Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 10
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 30
________________ कशा छोड़ दी है। अब तो कोई अधिष्ठायक देव ही इन मृतप्राय आत्माओं में कोई नये खून का संचार कर दे और ये गुर्जर प्रान्त एवं उपाश्रय की व्यवस्था को सर्प कचुकी के सदृश छोड़ कमर कस लें तो बात दूसरी है और इस प्रकार करके यदि ये लोग शासन सेवा कर यश कमाना चाहें तो इस कार्य में इन्हें अच्छी सफलता मिल सकती है । क्यों कि इस वक्त तक तो उन्नति के सब साधन बिलकुल लुप्त नहीं हो गए हैं अपितु गुप्त रूप से संप्राप्त हैं । हम देखते हैं कि अब अधिष्ठायक देव कब जागृत होते हैं । हमने यह लेख समाज की दुर्दशा से संतप्त हो अपने धधकते अन्तः कारण की प्रेरणा से लिखा है न कि व्यक्तिगत राग द्वेष के कारण | क्योंकि मेरी हार्दिक भावना सदा शासन को समुन्नत देखने की रहती है अतः यदि इस लेख से किसी के दिल को ठेस पहुँचे तो हम उनसे एक बार नहीं सहस्रों वार क्षमा के प्रार्थी है । इस लेख में हमने सुविहित्त श्राचार्यों, चैत्यवासी आचार्यों और क्रियोद्धारक आचार्यों के विषय में जो कुछ लिखा है वह मुख्यता को लक्ष्य में रख कर ही लिखा है क्योंकि गौणता में इससे अन्य प्रकार से भी होना संभव है जैसे कि: — "सुविहितों के समय कई व्यक्ति शिथिल होंगे ? चैत्यवासियों के समय सबके सब शिथिलाचारी नहीं पर अनेकों श्रात्मार्थी क्रिया करने वाले भी होंगे और क्रिया उद्धारकों के समय भी कई सच्चे दिल से शासन की सेवा करने वाले होंगे और अब भी कई ऐसे क्रिया उद्धारक महानुभाव होंगे कि वे अपनी आत्मा को एकान्त में

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