Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 10
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 15
________________ ( १५ ); ही ऐसे पड़े हुए हैं कि हम स्वतः इनके आगे अवनत हो जाते हैं । फिर भी यदि कोई हठ से इस बात को न मानें तो बात दूसरी है । मेरे खयाल से तो साधु चैत्य में रहने से हो चैत्यवासियों के प्रति जैन समाज की इतनी उदासीनता नहीं हुई होगी अपितु इसमें और भी अनेक खराबियें होंगी। किन्तु इसके तात्विक निर्णय के लिए हमारे पास फिलहाल कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है जिससे कि हम ठीक निर्णय कर सकें । चैत्यवासियों ने मन्दिर' में रहने के अलावा जैनागमों के विरुद्ध क्या-क्या कार्य किये थे ? जैसे की चैत्यवासियों से अलग हो कर नामधारी क्रिया उद्धारकों ने किये + | T आज हम लोग जिन चैत्यवासियों की अवहेलना एवं निन्दा कर रहे हैं वह केवल एक तरफी ही है जो कि चैत्यवासियों के प्रतिपक्षी नामधारी क्रियोद्धारकों के निर्मित ग्रन्थों के आधार पर ही करते हैं । पर खुद चैत्यवासियों की ओर से अन्य विषयों के अनेक ग्रन्थों के मिलने पर भी इस विषय का कोई ऐसा ग्रंथ नहीं मिलता है कि चैत्यवासी कौन थे ? और उन्होंने ऐसा कौनसा कार्य जैनागमों के विरुद्ध किया कि जिसकी हम निंदा करें ? चैत्यवासियों के खिलाफ लोगों ने चैत्यवासियों की क्रिया + किसी ने भगवान् महावीर के पांच कल्याणक के बदले छः कल्याणक की प्ररूपणा की, किसी ने स्त्रियों को पुजा करना निषेध किया, किसी ने भावकों को चरवला मुँहपत्ती रखना निषेध किया, किसी ने द्रव्य पूजा में पाप बतलाया इत्यादि ।

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