Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 10
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 19
________________ ( १९ ) अनेकों साधन हैं। यदि कोई केवल एक क्रिया को ही अपनावें और उसी का आग्रह करे तो उसकी यह भारी भूल है क्योंकि केवल क्रिया का पक्ष सदैव निर्बल रहा है; कारण किया, सदा सर्वदा एक सरीखो ही नहीं रहती है पर वह तो समय २ पर बदलती जाती है। भगवान महावीर के समय वज्रऋषभनाराच संहनन बालों के लिए क्रिया संबंधी जो शास्त्रों में उल्लेख किए गए हैं क्या वे मंद संहनन वालों के लिए उपयुक्त हो सकेंगे ? तथा पांचवें श्रारा के अन्त समय तक जो आराधिक होना बतलाया है क्या उनकी क्रिया और महावीर के समय की क्रिया एक होगी ? (नहीं)। क्रिया तो शरीर के संहनन की अपेक्षा रखती है । ___अस्तु ! जब हम क्रिया उद्धारकों की ओर देखते हैं तो वे किसी कारण को पाकर क्रिया का बहाना मात्र ले पूर्व पक्ष से अलग हो जाते हैं। और भविष्य का जरा भी विचार न कर स्वल्प समय तक क्रिया का कुछ ढोंग जरूर रखते हैं पर आखिर थोड़े समय में वे खुद या उनकी संतान इतनी शिथिल पड़ जाती हैं कि उनकी क्रिया पूर्व पक्ष वालों से भी घृणित हो जाती हैं क्योंकि उनमें एक दो गुण (!) और बढ़ जाते हैं । १-उन पर न तो कोई नायक होता है और २-न उन को आगम वचनों का ही इतना भय रहता है। और कई मताग्रही पक्षान्ध लोग उनके पक्ष में हो जाते है फिर सूत्र हो या उत्सूत्र हो पर मतान्धता के कारण वे उन्हें कुछ नहीं कह सकते हैं। अन्ततो गत्वा इन सब का नतीजा यह होता है कि उस कथित क्रिया को दिखाने के लिए बाद में अनेक जाल, माया, प्रपंच, छल, कपट आदि कर अपनी इज्जत रखनी पड़ती है और इस प्रकार कपट अदि का आश्रय

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