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(१७ ) २-चैत्यवासी लोग शायद वस्त्र पात्रादिकों का संग्रह करते होंगे, पर वे थे उस जमाने की खादी वगैरह के । किन्तु आजकलके कई महात्माओं (1) के भी इनकी कमी नहीं है अपितु उनसे विशेष ही हैं, क्योंकि एक २ पदवी में सौ २ कम्बले तथा चादरें आती हैं वे भी महान् हिंसा से बनी हुई बहुमूल्य वाली ।
३-चैत्यवासी लोग शायद द्रव्य रखते या रखाते होंगे ? 'परन्तु आज के कई नामधारी क्रिया पात्रों के अधिकार में द्रव्य की कमी नहीं है । किसी के ज्ञानखाता, किसी के उपधान उजमणा, किसी के दीक्षा फंड, किसी के विद्यालयों की मालको में द्रव्य रहता है और वह द्रव्य उन अधिपत्यों के आदेशानुसार हो व्यय होता है । इन दोनों में इतना अन्तर अवश्य है कि चैत्यवासियों का एकत्र किया हुआ द्रव्य जैन शासन के काम आता था किन्तु भाजकल के महापुरुषों (।) का द्रव्य तो शायद सटोरियों, धूतों एवं मशकरों के काम में ही आता है, और कई एकों के द्रव्य का तो बैंक देवाला फूंक चुकी हैं। __४-चैत्यवासी लोग शायद सावध कार्य भी करते कराते होंगे, पर-आज के सूरीश्वर (1) भी सावध कार्यों के आदेशोपदेश से बच नहीं सके हैं । अपितु आजके सूरिश्वर (1) तो उनसे भी दो कदम श्रागे ही बढ़े हुए हैं।
५-चैत्यवासी तोर्थङ्करों के सिवाय किसी भी सामान्य व्यक्ति की मूर्ति नहीं बनाते थे पर आज तो पतितों को पादुकाएं
और मूर्तियों के नम्बर खूब ही बढ़े हुए हैं। इतना ही क्यों पर समाज को भारभूत व्यभिचारी एवं अपठित शिथिलाचारियों की.