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उपाध्यायजी ने आचार्य जिनप्रभ के षट्कल्याणकवाद को भी याद किया है, वे लिखते हैं—किसी अवचूर्णी में कल्याणकषट्क का व्याख्यान मिलता है, वह— 'सन्देहविषौषधी' का अनुसरण मात्र है, वास्तव में इस वाद का समाज के लिए कुछ भी उपयोग नहीं।
उपाध्यायजी ने स्थविरावली में आर्य रक्ष के निरूपण में दशपुर नगर के पुरोहित पुत्र आर्य रक्षित सूरिका वृतान्त लिख डाला है, यह अनवधान का फल है, वास्तव में आर्य रक्षित आर्य रक्ष स्थविर से बहुत पूर्ववर्ती थे, जिसका किरणावलीकार को ख्याल नहीं रहा। इसी निरूपण में उपाध्याय धर्म सागरजी महाराज ने तोसलिपुत्राचार्य को आर्य रक्षित का मामा बताया है, जिसका अन्य प्रमाणों से समर्थन नहीं होता। ___ उपाध्यायजी ने एरावती नदी कुणालापुरी में दो कोस के विस्तार में बहती होने का लिखा है, परन्तु उपाध्यायजी को समझ लेने की आवश्यकता थी कि "कुणाला" नाम नगर का, नहीं, देश का है, जिस देश में इरावती नदी बहती है, उस देश का नाम है "कुणाला" और उसकी राजधानी नगरी का नाम है-"श्रावस्ती," दुःख है कि केवल उपाध्यायजी ही नहीं, अन्य भी अधिकांश कल्प टीकाकारों ने “कुणाला" जनपद को “कुणाला" नगरी ही समझकर इस सूत्र की व्याख्या की है। ___ सामाचारी प्रकरण में आने वाले कतिपय शब्दों की व्याख्या करने में उपाध्याय श्री धर्मसागरजी ने आचार्य जिनप्रभ सूरि की “संदेह विषौषधी पंजिका" का अक्षरशः अनुसरण किया है, उदाहरण के रूप में "गणि' शब्द को लीजिये, गणि शब्द का अर्थ आप आचार्यों को सूत्रादि का अभ्यास कराने वाला बताते हैं, अथवा जिसके पास अन्य आचार्यों ने सूत्रादि पठनार्थ उपसम्पदा ली हो उन्हें आप “गणि' बताते हैं, यह अर्थ शास्त्र-विरुद्ध है, जिसका विशेष स्पष्टीकरण “संदेह विषौषधी' के अवलोकन में किया है, पाठक गण वहाँ पढ़लें।
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