Book Title: Prabandh Parijat
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 445
________________ अशुद्ध शुख पृष्ठ सं __पंक्ति २६० २८ २६१ ११ भाषा PA भाष्य सढ़ी सढ़ी २६१ १४ दळूणं मोइयातो तीर्थों में Cl तो इनकी निश्चित किसी भी प्रकार से गृहस्थ ३०१ ३०७ ३०७ ३०६ ३११ ३१२ यदीयम् ३१३ ३१५ १३ सट्ठी सद डी दढ्द्ग भोइयातो तीर्थों मे ता इनको निश्चत किसी भी गृहस्थी मंदोयम् १३६६ १३७६ वस्तुपाल दक्षिणी सानिध्य स्वच्छ सिंहस्थ समवरण हाथियों सपार द्वासपति नंदतादेषः १३६६ १३६६ मए प्रतिष्टितेति प्रतिष्टितेति प्रतिष्टिता मङ्गसं पुष्यदंता १३६८ १३७८ तेजपाल दक्षिण सांनिध्य सवच्छ सिंहरथ समवसरण हाथियों के सवार द्वासप्तति नंदतादेष १३६८ १३६८ गये प्रतिष्ठितेति प्रतिष्ठितेति प्रतिष्ठिता मङ्गलं पुष्पदंती rrrrrr mmm or m mr mr m m mr mr m m m mmmmmmm mr mr mmmmmmr mr d०.० M222222242 MMMr. 9 MOM ३१६ m 9 ३३७ ३३८ 4 ا لله الله २४ ३३६ ३४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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