Book Title: Prabandh Parijat
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 432
________________ ४१७ द्रामा १ चुकडीउए १ नालीउर नं० ५००, फलदि धूपपुडी, लसू, पछेडी १ धज छूटती लहइ, अध सोली दीवाली नेन्सादि (?)....... १२ ऐ सारु (?) कर.......... पन............ __हूंबड वसहीनु लाग माणां २४ चोषा, करस २४ घृत दीवाली निवेदतां लहइ महाधज चडती पछेडी एक छूटती दि चउकड द्राम १ सेइ चोषा, नालीउर १ सइ, ५०७ फल धूपुडी १ उधसोली तेल दीवेल लहइ सोपारी ६४, पान ६४ दीवाली लहइ, द्राम १२ चकड हूंबड न दिने (? )अवावरी कणजतां २४ चोषा माणां २४ घ्रतकरस आदिनाथ कलसी.... "तेज ....'चडती कलसनी रीति आदिनाथनी रीतिवत् अणी रीतिमारे ए............ रीतियां आदिनाथनी रीति ऐ तिहू देहरारी चडाई देवि पहिला ध्वज कलस देवि चडतु, पाछि देहरि चडइ: ।। राज श्री (शा ?) दूलराज पा(पर)मार श्रीमातानु ग्रास थाप्यु, सम्वत् १४।१७ का वासते पु ........... ४- सम्वत् १३१३ वर्षे वैशाख सुदि १४ सोमे पिलि महाश्रीनीजद तस्य पुत्र महा श्री जयसिंह देव तस्य भार्या बाइ श्रीभ्रमा देवि ॥ शुभं भवतु।। ५--सम्वत् १५ आषाढादि २५ वर्षे शाके १३।७० प्रवर्त्तमाने फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ सोमवासरे श्री गूर्जर श्रीमाल ज्ञातीय मंथाल गोत्रे श्रीषरतरपक्षीय मन्त्रिविजपालसुत मन्त्रि मण्डलिक तत्पुत्र मं० रणसिंह तत्पुत्र प्रथमः सा० सायरः, द्वितीयः सा० षेढाभिधः, तृतीयः सा० सामन्तः, चतुर्थःसा० नातिगः, तन्मध्यतः सा० सायर सु० बाई पूजी तत्पुत्र ४ पुत्री ३ प्रथमः सा० पद्माभिधः, दितीयः सा० रत्नाख्यः, तृतीयः सा० आसाख्यः, चतुर्थः सा० पावार........ भधर्थ (?)पुत्र सा............ (कडु ? ) यामिधानः तद्भार्या लोंबाइ मल्हाइ रंगाइ लखोवइ (हू ?) एतन्मध्ये श्री अर्बुदाचल महातीर्थे यात्रार्थ समागते च (न) पूर्वं योगिनीपुर वास्तव्य पश्चात् सांप्रतं अहमदावाद श्रीनगरवासिना श्री मव्य एच (?) कुल प्रसिद्धन सा० आसाकेन प्रथम भा० माघी द्वितीय भा० हमीरदें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448