Book Title: Prabandh Parijat
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 389
________________ ३७४ १६८-संवत् १६१३ वर्षे वैशाख शुदि ८ दिने श्रीवृहद्गच्छे भट्टारक श्री ७ पुण्यप्रभसूरि तशिक्ष (तत् शिष्य) मुनि विजयदेवेन यात्रा कृता सफला भवतु ॥ १९६-संवत् १६०८ वर्षे मगसर वदि ११ भौमे रषि बीजामती पाट श्रीषीमराज, स (री) षिरकुभ; रष गेबीसिंह देसुत संघवी श्रीमल, भारजा सफलादे, अगजातक संघवी केल्हा, सरजा, वासं गाम अरमादा, साहा पीथा, अमरा, लोला, लषमा, लाला, भीला, कचरा, धरण, कल्हा, हाला, जागा सफल ।। २००-संवत् १७८५ वर्षे चैत्रसुदि १ बुधे तपागच्छे कमल कलशसूरीश्वरशाखायाँ पूज्यभट्टारक श्री ५ श्रीपद्मरत्नसूरीश्वर श्रीअचलगढ़े पं० कमलविजयगणि पं० भीमविजयगणि ५ युतेन चतुर्मासके दि प्रभा (?) देवलवाटके यात्रा सफलीकृता ॥ श्री यस्तु । मुँहता गजा मनोहरजी। २०१-संवत् १६२१ वर्षे माधवदि १० शुक्र श्री तपागच्छनायककुतपुरीयपक्षे श्रीहंससंयमसूरिशिष्य श्री श्री ५ हंसविमल सूरिमुपदेशेन प्राग्वाट ज्ञातीय संघवी गंगदास सुत सं० जइवंत भार्या मेनाइ अपर माता जीवादे सुत संघाधिपत्य (ति) सं० मूलवा, भा० रंगादे सुत भूला भला, तथा सं० हरीचन्द, भाई सीदा, सं. भीमा सुत व बसुत मयण समस्त कुटुंब सहितेन श्री अबुर्दतीर्थे सकलसंघसहितेन सं० श्रुन्अलवेन यात्रा कारापिता । शुभं भवतु ।। श्री अहम्मदावा । २०२-श्री सोमसुन्दरसूरिसंताने श्रीसोमदेवसूरिशिष्य । श्री सुमतिसुदरसूरिशिष्यतपागच्छनायक श्रीपूज्यकमलकलशसूरि शिष्य श्रीजयकल्याणसूरि ॥ पूज्य पं० संयमहंसगणि शिष्य पं० कुलोदयगणि शिष्य पं. उदयकमलगणि लावण्य कमलगणि शिष्यरत्न कमलमुनि संवत् १५८३ वर्षे चातुर्मासकस्थिता श्री आदिनेमि नित्यं त्रिसंध्यं प्रणमति ॥छ।। शुभं भवतु ॥ २०३-संवत् १६०१० (१६१०)वर्षे चैत्र क्षुदि १५ बुधे श्री आवेम आगम गच्छे श्री उदयरत्नसूरि पट्ट श्री सौभाग्य सुदर सूरिपरिवारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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