Book Title: Prabandh Parijat
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 387
________________ ३७२ (ग) परम्र (?) चमास कीधा, संघ आग्रहेन श्री गुणनिधानसूरप्रमादात (?) । १८६-श्रीमालषेता, वंश श्री श्रीमाल, जाडा समा जात्रा सफल हुई । संवत् १६१६ वरषे माहवदि ११ वार भो (?) म विश साल श्रीमाल जात्रा सफल गोत्र कोटा । १६०-संवत् १६०८ वर्षे वसाषिवदि ६ सुक्र वासरे विध पक्ष्य श्री ५ विजइराज तत् सिष्य श्री धर्मरास (ज? )तत्सिष्य श्री ५ षिमासागर तत् सिष्य रिषि होरा रिः छीतरा रि:धना रिः लाला रिः झोझा रिः रूपू रि दसर्थ, साध्वी नाथी, सा: मीमां, साः दीपां, साः दूदां, साः षेमां, साः रत्नां, सा: रूपां, समस्त परिवार सहित परिवार सहत श्री अर्बुदाचल जात्राँ कृत्वा सफल भविति समस्त संघ श्री गेहा, श्राबिछ लाकालदे, श्रा० लाडमदे प्रमुखकिल्याणमस्तु ।। १६१-५० स० जे प्रमोदगणि, विद्याकुशलमुनि, तथा प्र० आणंद शोनी, यात्रा सफ़ल ।। १६२–संवत् १५६७ वर्षे फागुणं शुदि ५ बार सोमे सं० सामल सुत सहसा सुत कालू सुत अंचलू सूगणाग़ोत्रे, वास्तव्य रतलाम नगरे यात्रा सफला सुभा भगतुः ॥ १९३-० १६१४ वर्षे मार्गसिर नदि ५ शुक्र मघा नक्षत्रे वृद्धि नाम्नि योगे, शुभोदयशुभवेलायां श्रीतपागच्छे श्रीश्रीपालहणपुरा पक्षीयपं० श्रीविनयप्रमोदगणि शिष्योपदेशेन अहम्मदावाद वासीय श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० श्रीवमा उसगाल ज्ञातीय सं० सीहा उभयोरेकत्रीभूये चतुर्विध श्रीसंघयुतौ श्री अबुर्दाचले यात्रा कृता । सकल कुटुंब युतौ । श्रीवमा श्री सीहाष्यश्र(श्च) श्री आदिनाथप्रसादात् ऋद्धि भवतु व द्धिर्भवतु । मं० माला भवतु । १६४-६० लक्ष्मीकुशल गणिनी यात्रा, शिष्य विद्याकुलनी यात्रा सफल ॥ संवत् १६२१ वर्षे माह वदि १० शुक्र श्री तपापालहणपुरीयपक्षे श्री सोमविमलसूरि श्रीसकलहर्षसूरिणोपदेशेन श्री अहम्मदावादीय श्रीश्रीमाल जातीय सा रत्ना भार्या अजाई पुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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