Book Title: Paumchariyam Part 01
Author(s): Parshvaratnavijay
Publisher: Omkarsuri Aradhana Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ 11 सीसेण तस्स रइयं, राहवचरियं तु सूरिविमलेण । सोऊणं पुव्वगए नारायण-'सीरिचरियाई ॥ ११८-११८ ॥ सुत्ताणुसारसरसं रइयं गाहाहि पायडफुडत्थं । विमलेण पउमचरियं संखेवेण निसामेह ॥ १-३१ ॥" अंते : "इइ नाइलवंसदिणयरराहुसूरिपसीसेण महप्पेण पुव्वहरेण । विमलायरिएण विरइयं सम्मत्तं पउमचरियं ॥ ११८ ॥" 'पउमचरियं'नो उल्लेख आ.उद्योतनसूरिजीए ई.स. ७७८मां रचेला कुवलयमाळा ग्रंथमां (पेज ३:११ २७-२९) कर्यो छे. केटलाक विद्वानोनुं मानवं छे के ई.स. ६७७मां रचायेखें 'पद्मचरित' प्रस्तुत 'पउमचरिय'नो ज विस्तार छे. एटले पउमचरियं विक्रमना सातमा सैका पहेलाथी ज जाणीतुं बन्युं छे ए निश्चित छे. ___ ग्रंथकारे आपेली माहिती प्रमाणे नाईलवंशमां सूर्यसमान आचार्य 'राहुसूरि' स्वसमय अने परसमयना विशेषज्ञ हता. तेमना शिष्य नाईलवंशने आनंद करावनार 'विजय' थया. तेमना शिष्य पूर्वधर आ. विमलसूरिए 'पूर्व'मां रहेला नारायण (वासुदेव) अने बळदेवना चरित्र सांभळीने वीरप्रभुना निर्वाणने ५३० वर्ष पसार थया त्यारे संक्षेपमा 'पउमचरिय' रच्युं छे. उद्योतनसूरिए करेला उल्लेख 'बुहयणसहस्सदइयं हरिवंसुप्पत्तिक्रारयं पढ़मं ।' मुजब विमलसूरिए हरिवंसनुं वर्णन करतुं कोई काव्य रच्युं होय तेम जणाय छे. जो के अत्यारे ते मळतुं नथी. ग्रंथकार श्वेतांबर शाखाना ज होवाना अनेक स्पष्ट प्रमाणो ग्रंथमां उपलब्ध थाय छे. कोइ कोइ बाबतो दिगंबर संमत पण आमां जोवा मले छे एy कारण एवं पण होय के कोइए संप्रदायव्यामोहथी ग्रंथमां फेरफार कर्यो होय. आq अनुमान करवानुं कारण ए छे केपउमचरिय २०:९५मां पूर्वमुद्रित संस्करणमां आ प्रमाणे पाठ छे. अट्ठारस तेर अट्ठ य सयाणि सेसेसु पञ्चधणुवीसं । पडिहायन्तो कमसो उस्सेहो कुलकराण इमो ॥ २०-९५ ॥ जेसलमेरनी प्राचीन ताडपत्रीय प्रतनो पाठ पउमचरियं भाग-२ परिशिष्ट ७ 'पाठान्तराणि' पृ. ८४मां आ प्रमाणे छे. नव अट्ठ सत्त सड्ढा छच्छच्च धणू अद्धछट्ठा य । पंच सया पणुवीसा उस्सेहो कुलकराण इमो ॥ १. केटलाक विद्वानोए 'सिरि'नो अर्थ बळदेव करवाना बदले 'श्री' को छे. २. एक प्रतना पाठ प्रमाणे ५२० वर्ष अने पं.कल्याणविजयजी गणिना मते 'तिसयवरिससंजुत्ता' पाठ होवो जोईए. ए प्रमाणे गणतां ई.स. २७४ पउमचरियंनो रचना संवत आवे. मुनि मौर्यरत्नविजयजीना अनुमान मुजब जो दूसमाए तिवरिससंजुत्ता पाठ होय तो वी.नि.सं. ५०३मां रचना थई एवो अर्थ थाय. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.iainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 226