Book Title: Parshwa Pattavali Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala View full book textPage 6
________________ - ५-प्राचार्य श्री स्वयंप्रभ मरीश्वर स्वयंप्रभ सूरिगुण भूरि, वे विद्या के भंडार थे। ___ यक्ष बलो उन्मूल कारण, वर आपही कुठार थे। श्रीमाल नगर उद्यान में, समवसरण किया आपने । होने का था पशु यज्ञ जहां, उपदेश दिया था आपने। नब्बे सहस्त्र राजा प्रजा को, जैनी बनाये कर दया। सुन यज्ञ फिर पदमावती में सूरि पधारे कर मया ।। दे उपदेश मिथ्या तम छुड़ाया. घर पैंतालीस हजार को शान्त्यादि के मन्दिर बनाये, कब भूले उपकार को ॥८॥ ६-प्राचार्य श्री रत्नप्रभ सूरीश्वरवीर नि० सं० ५२ रत्न सदृश पट्ट षष्ठम्, श्री रत्नप्रभ सूरि ने लिया। उपकेशपुर में मायके, उपदेश तो जब्बर दिया ॥ देवी चंडा नृप मन्त्री, क्षत्री तो सवा लक्ष थे । दीक्षा शिक्षा जैन धर्म की, देकर लिया सत्पक्ष थे ॥६॥ वासक्षेप मंत्र विधि से, उन सबकी शुद्धि करी । महाजन संघ बनाय के, पुनः उसकी ही वृद्धि करी ॥ कालान्तर से हुआ नाम उपकेश, अब प्रसिद्ध प्रोसवाल है। ___ उपकारी गुरु चरण में, वन्दन सदा त्रिकाल है।१०॥Page Navigation
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