Book Title: Parshwa Pattavali
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ (३१) ८३- आचार्य श्री सिद्ध सूरीश्वर सं० १६३५ पट्ट तैयांसी सिद्ध सूरिजी श्रेष्ट वैद्य कहलाते थे । प्रतिभाशाली थे यशःधारी, जहां जाते श्रादर पाते थे ! बीकानेर नरेश भक्ति से, महाराव ने महोत्सव किना था । उपकेशगच्छ के अन्तिम सूरी, सुयश जीवन में लिना था ॥ ८४ - श्राचार्य श्रीकक्कसूरीश्वर सं० १६६५ पट्ट चौरासी योग्य समझ कर, कक्कसूरि को स्थान दिया । फिर भी नहीं थे लायक पद के अधिकार श्रीसंघ छीन लिया। व्यवहार सूत्र में थी यह श्राशा, श्रीसंघ जिसका पालन किया। वरदान था पूर्व सूरि का, भवितव्यता करके दिखा दिया । ११४ पार्श्वनाथ की शुद्ध परम्परा, निग्रन्थ गच्छ कहलाता था । स्वयंप्रभ सूरी थे विद्याधर, गच्छ विद्याधर कहाता था । रत्नप्रभ सूरि उपकेश पुर में, महाजन संघ बनाया था । उस प्रदेश में विहार करने से, गच्छ उपकेश कहलाया था । १९५ कुन्कुदाचार्य से भई शाखा, भीन्नमाल उसका नाम था ॥ खट कुंप से शाखा दूसरी, कलिकाल का यह काम था । चन्द्रावती में रहे जो साधु, चन्द्रावती शाखा था नाम । चतुर्थ शाखा श्ररु निकली, खजूर पट्टन था उसका धाम ||

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34