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८३- आचार्य श्री सिद्ध सूरीश्वर सं० १६३५ पट्ट तैयांसी सिद्ध सूरिजी श्रेष्ट वैद्य कहलाते थे ।
प्रतिभाशाली थे यशःधारी, जहां जाते श्रादर पाते थे ! बीकानेर नरेश भक्ति से, महाराव ने महोत्सव किना था । उपकेशगच्छ के अन्तिम सूरी, सुयश जीवन में लिना था ॥
८४ - श्राचार्य श्रीकक्कसूरीश्वर सं० १६६५
पट्ट चौरासी योग्य समझ कर, कक्कसूरि को स्थान दिया । फिर भी नहीं थे लायक पद के अधिकार श्रीसंघ छीन लिया। व्यवहार सूत्र में थी यह श्राशा, श्रीसंघ जिसका पालन किया। वरदान था पूर्व सूरि का, भवितव्यता करके दिखा दिया । ११४ पार्श्वनाथ की शुद्ध परम्परा, निग्रन्थ गच्छ कहलाता था ।
स्वयंप्रभ सूरी थे विद्याधर, गच्छ विद्याधर कहाता था । रत्नप्रभ सूरि उपकेश पुर में, महाजन संघ बनाया था । उस प्रदेश में विहार करने से, गच्छ उपकेश कहलाया था ।
१९५ कुन्कुदाचार्य से भई शाखा, भीन्नमाल उसका नाम था ॥
खट कुंप से शाखा दूसरी, कलिकाल का यह काम था । चन्द्रावती में रहे जो साधु, चन्द्रावती शाखा था नाम ।
चतुर्थ शाखा श्ररु निकली, खजूर पट्टन था उसका धाम ||