Book Title: Parshwa Pattavali
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 30
________________ (२६) ७६-आचार्य श्री देवगुप्तसूरीश्वर सं० १७२७ । देवगुप्त छहोतर पट्ट सूरी, सूर्य सम प्रकाश किया। ___ थी बिजली शासन की उनमें, उदार वृत्ति से शान दिया। रक्षक थे वे स्वधर्म के, पतितों का उद्धार किया । जो भूले उपकार गुरु का, व्यर्थ गमाय उसने जिया ॥१०४ ७७-आचार्य श्री सिद्ध सूरीश्वर सं १७६७ . पट्ट सितोतर सिद्धसूरीश्वर, रांका शाखा दृढ़ धर्मी थे। बालपने अभ्यास मान का, जैन धर्म के मर्मी थे। सिद्धहस्त थे सब विद्या में, योग साधना पूरी थी। की थी सेवा जिन गुरुवर की, सिद्धि कभी नहीं दूरी थी ॥१०५ ७८-आचार्य श्री कक्क सूरीश्वर सं० १७८३ पट्ट इठन्तर हुए सूरीश्वर, कक्कमूरि बढ़ भागी थे। सुविहितों में आप शिरोमणि, जैन धर्म के रागी थे। अन्य गच्छों के मिल मुमुक्षु, पढने को नित्य आते थे। वात्सल्यता क्या कहू आपकी, हो दत्त चित्त पढाते थे ॥१०६ ७६-प्राचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर सं० १८०७ पट्ट गुणियासी, देवगुप्तसूरि, श्रेष्ठि वैद्य विचक्षण थे। सप संयम वैराग्य रंग में, जिनके रंग विलक्षण थे। शिथिलाचारी थे कई साधु, जिनको खूब फटकारा था। . · उग्र विहारी उनको बनाये, फिर लुम्पकों को ललकारा था।

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