Book Title: Parshwa Pattavali
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 28
________________ जाता हुआ भस्म ग्रह ने, अशेष फटकार दिखाई थी। श्रीसंघ की राशि पे आया, धूम्रकेतु विग्रह फैलाई थी। संस्कृति यवनों की पाकर, लुम्पक था अन्याय किया। निज अपमान के कारण उसने, शासन को नुकसान दिया। जिन प्रतिमा जिनागम ये दोनो, शासन के दृढ स्थम्भ थे। हस्तक्षेप करके निकाला, मत अपना ही दम्भ थे । अज्ञलोग मिल उस अब को, देकर साथ बढ़ा दिया । अहा-हा कलिकाल तेरा, धन्य है इस जग में जिया ॥ ७०-प्राचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर सं० १५२८ देवगुप्त सूरि पट्ट सित्तरवें, नाबरिया जन मन भाया था। न करके परवाह राजमान की, सूरि-पद शोभाया था। • कम सूरा सो धर्मे ' सूरा, सत्य करके दिखलाया था। भूपति वादी चरण कमलों में,श्राकर शीश झुकाया था। ६६ ७१-प्राचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर सं० १५६५ पट्ट इकोत्तर सिद्धसूरिश्वर, छाजेड़ जाति के भूषण थे। सूरि पद का महोत्सव कीना, मन्त्री लाल नहीं दूषण थे । प्रभाविक थे जिन शासन के, शिष्यों की संख्या बढाई थी। लुम्पकों को जीते बाद में, विजय ध्वज फहराई थी।

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