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६५-आचार्य श्रीसिद्धसूरीश्वर सं० १३३० पट्ट पैसठवें सिद्धसूरीश्वर, वैद्य मेहता कुल नायक थे।
रत्ल खान से रत्न ही निकले, शिष्यगण भी सब लायक थे। कोट्याधीश थे भक्त आपके, संघपति पद के दायक थे। श्रेष्टि गौत्र दिवाकर देशल, समरसिंह भी पायक थे ।
उपाध्याय मुनि शिखर ने, ध्यान की धुन लगाई थी॥
शानी थे फिर तप करने में, लब्धि अनेकों पाई थी। वाचनाचार्य था नागेन्द्र, जो नागेन्द्र गुण गाते थे ।
लक्ष्मीकुमार और सोमचन्द्र, संघ को बहुत सुहाते थे।
मंगल कुम्भ मुनीन्द्र जिसकी, विद्वत्ता जग जहारी थी।
माण्डवगढ में अष्ठापद की, प्रतिष्ठा प्रभाकारी थी। हरदेव व विजयदेव ने, यात्रार्थ संघ निकाले थे।
लक्ष मनुष्य था साथ संघ में; छ 'री' को वे पाले थे।
तीर्थ यात्रा निमित्त देशल ने: विराट्संघ निकाले थे।
कृपा थी गुरुवर की जिन पर, फिर उदार भाव निराले थे। चौदह करोड द्रव्य व्यय करके, सुयश खूब कमाया था ! . साधर्मियों के बन्धु बन कर सहायता आराम पहुचाया था।