Book Title: Parshwa Pattavali
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 24
________________ (२३) ६४-आचार्य श्रीदेवगुप्त सूरीश्वर सं०१३०५ पट्ट चौसठवें देवगुप्त सूरि, भद्र गौत्र उज्जागर थे। थे शिष्य विद्या के सागर, जैसे गुण रत्नाकर थे। साहित्य क्षेत्र की करी उन्नति, स्याद्वाद विस्तारा था। चमका दिया फिर जैन धर्म को, अहा-हाभाग्य हमारा था। वीरचन्द्र मुनि अदूभुत ज्ञानी, कई सूरि पढने को प्राते थे। प्रभाव था यंत्र मंत्र का, देव देवी सेवा पाते थे। मरुकोट क्षेत्रपाल का, उपद्रव श्राप मिटाया था। प्रल्हादनपुर की राजसभा में, कृष्णादत्त को नमाया था॥ देवचन्द्र को देवी सरस्वती, साक्षात् हो वरदान दिया। सप्त छत्रों ले धर्म रुचि को, जीत छत्रों को छीन लिया। तैलंग देश में धर्म कीर्ति था, दिगम्बर को परास्त किया। करणाटक के महादेव की, भक्ति से ग्रन्थ निर्माण किया ॥ ८३ उपाध्याय हरिश्चन्द्र अापके, चमत्कारी उपदेशक थे। कच्छ देश जाडेजा क्षत्री, कुँवारी कन्या के घातक थे। उपदेश देकर उस प्रथा को, आपने बन्द करवाई थी। और कई उपकार करके, यश की भेरी बजाई थी।

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