Book Title: Parshwa Pattavali
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 22
________________ (२१) ५६ - आचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर सं० १२६० छपनवें पट्ट सिद्ध सुरीश्वर, जाति चोपड़ा उज्जारी थी। निमित स्वरोदय योग विद्या में, कीर्ति आपकी भारी थी कई मुमुक्षु श्राते पढने को, ज्ञान दान दातारी थे । क्षमाशील दया और शांति, शासन के हितकारी थे । ५७ - श्राचार्य श्री कक्कसूरीश्वर सं० १२६५ पट्ट सतावन कक्कसूरीश्वर. छाजेड़ कुल के दीपक थे । सूर्य सदृश थी क्रान्ति आपकी, मोह शत्रु के जीपक थे व्याख्यान में मनुष्य तो क्या, देव मुग्ध बन जाते थे । उपकारी गुरु राज जिनके, सुर नर मिल गुण गाते थे । ५८ - श्राचार्य श्रीदेवगुप्तसूरी सं० १२७४ पट्ट अठावन देवगुप्तसूरि, संचेति कुल प्रभाविक थे। त्यागी वैरागी थे फिर तपस्वी, ज्ञान गुण स्वभाविक थे । देख श्रापकी प्रभा मानव, संसार समुद्र को तरते थे । हा - हा ऐसे गुरु देवन की, धन्य वे वन्दन करते थे । ५६ - आचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर सं० १२७७ सिद्ध सूरीश्वर पट्ट गुणसठवें, चोरड़िया कुल दिपाया था । अथाह था जो ज्ञान श्रापका, कवि किरीट कहलाया था । राजसभा में उपदेश करके, कई भूपति समझाये थे । जिनके गुण गगन में गांजे, सुरनर पार न पाये थे ।

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