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५०--आचार्य श्री सिद्ध सूरीश्वर सं० ११२८ पट्ट पचासवें सिद्धसूरीश्वर, गदइया जाति बडवीर थे ।
आत्म बली विद्या गुण पूरण, सागर जिसे गम्भीर थे ॥ वीर सूरि भावहड़ा गच्छ के, जिनका उपद्रव हटाया था।
कदर्प ने चैत्य करवाया, प्रतिष्ठा कर यश पाया था । ५१-आचार्य श्री कक्कसूरीश्वर सं० ११७४ पट्ट एकवान श्रेष्टि भूषण, भूमण्डल श्राप विचरते थे ।
राजा महाराजा जिन चरणों की, सेवा भक्ति करते थे। राजगुरु नामे कक्कसूरि, जेष्ठ गच्छ कहलाते थे।
हेमचन्द्र गुरु कुमारपाल, चरणों में शीश झुकाते थे ।
स्वर्गवास हुआ सूरि का, सब प्राचार्य वहां आये थे।
हेमचन्द्र सूरि गुण भूरि, सबको ऐसे सुनाये थे ॥ गया शेर आज दुनियां से. अरे हिरणों निश्चिन्त रहो। ____उनके हुँकारा मात्र से तृण, गिरते मुंह से थे यों कहो ।
वाचनाचार्य पद्मप्रभ था, त्रिपुरा देवी वरदान दिया।
कलिकाल सर्वज्ञ सूरीजी, जिनके दिल को बस किया ॥ योग विद्या बतलाई राणी को, पाट्टण में उद्योत किया।
डांबरेल नगर का था भूपत, यशोदित्य को मंत्र दिया ॥ -