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४७ - आचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर सं० १००८ संतालीसवें पट्ट प्रभाकर, सिद्ध सूरीश्वर नामी थे ।
दृढ थे दर्शन ज्ञान चरण में, शिवसुन्दरी के कामी थे । ग्रन्थ निर्माण किये पूर्व कई ग्रन्थ कोष थपाये थे ।
उन्नति शासन की करके, मन्दिरों पे कलश चढ़ाये थे || ६१ जम्बूनाग ज्योतिष विद्या में, सफल निपुणता पाई थी ।
लोद्रवा पट्टन में जाकर, विप्रों से विजय मनाई थी ॥ जो नहीं करने देते थे वहां, मन्दिर प्रतिष्ठा करवाई थी ।
ग्रन्थ किया निर्माण आपने, विद्वता की भेरी बजाई थी ।॥
४८ - प्राचार्य श्री कक्कसूरीश्वर सं० २०५१ बाप्प नाग नाहटा जाति, जिनके वीर शिरोमणि थे ।
चालीसवें पट्ट बिराजे, कक्कसुरि सु गणि थे || भैंसाशाह का कष्ट मिटाया, छाणा सब सोना बनाया था । सिक्का चलाय जिससे जाति, नाम गढ़इया पाया था ।
४९ – आचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर सं० ११०= उन पचासवें पट्ट पारख वर देवगुप्त सुरीश्वर थे ।
सिद्धगिरी का संघ साथ में, भैंसाशाह अग्रसर थें ॥ अपमान किया माता का गुर्जर. बदला जिसका लिधा था ।
उद्योत किया शासन का सूरि श्रमर नाम सुभ किधा था ।