Book Title: Parshwa Pattavali
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 14
________________ (१३) ३१-आचार्य श्रीरत्नप्रभसूरीश्वर एकतीस पट्ट सूरि शिरोमणि, रत्नप्रभ उद्योत किया। षट्दर्शन के थे वे ज्ञाता, ज्ञान अपूर्व दान दिया। सिद्ध हस्त अपने कामो में, जैन-ध्वज फहराया था। देश देश में धवल कीर्ति, गुणों का पार न पाया था। - ३२-प्राचार्य श्री यक्षदेवसूरीश्वर . पट्ट बतीसवें यक्षदेव गुरु, त्यागी वैरागी पूरे थे। वीर गम्भीर उदार महा, फिर तप तपने में शूरे थे। धर्मान्ध म्लेच्छ मन्दिरों पर, दुष्ट आक्रमण करते थे। उनके सामने बद्धकटि से, बली हो रक्षा करते थे। म्लेच्छ आकर मुग्धपुर में, कई मुनियों को मार दिये। घायल कर डाले कई को पकड़ सूरि को कैद किये ॥ जबरन म्लेच्छ बनाया जैन को , उसने सूरि को छोड़ दिये। आये षटकूप धाम अकेले, श्राद्द निज पुत्रों को मेट किये। अहा,ह इन सूरीवर के गुण,महिमा कहांलों गाऊँ मैं।... प्राण प्रण से मन्दिर मूर्तियां, बचाये केती बताऊ मैं ।। श्रावक भक्त भी ऐसे थे वे, निज पुत्रोंको भेंट कर देते थे। सूरिवर के शिष्य बना कर, शासन सेवा फला लेते थे।

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