Book Title: Parshwa Pattavali
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ ३६-आचार्य श्री कक्क सूरीश्वर पट्ट छत्तीसवें कक्कसूरि हुए, श्रेष्टि गौत्र के भूषण थे। करे कौन स्पर्धा इनकी, समुद्र में भी दूषण थे। प्रभाव प्रापका था अति भारी, भूपत शीश झुकाते थे। तप संयम उत्कृष्टी क्रिया, सुर नर मिल गुण गाते थे। ३७-प्राचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर सेतीसवें पट्टधर हुए सूरिवर, श्रेष्टि कुल के शृङ्गार थे। . देवगुप्त था नाम अापका, क्षमादिक गुण अपार थे। प्रतिबोध देकर भव्य जीवों का, उद्धार हमेशां करते थे। __ प्रतिष्टा की महिमा सुन के, पाखण्डी नित्य जरते थे। ३८-आचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर अकृतीसवें वे पट्ट विराजे, सिद्धसूरि अतिशय धारी थे। शुद्ध संयमी रू कठिन तपस्वी, आप बड़े उपकारी थे। प्रचार गुरु ने किया अहिंसा, शिष्यों की संख्या बढ़ाई थी। सिद्ध हस्त थे अपने कामों में, अतुल सफलता पाई थी। ३६-आचार्य श्री कक्कवरीश्वर करुणा-सागर कक्कसूरीजी, नौ वाड शुद्ध ब्रह्मचारी थे। करते भूप चरण की सेवा. जैन धर्म प्रचारी थे। अनेक विद्याओं से थे भूषित, देव सेष नित्य करते थे। हितकारी थे संघ-सकल को, वे आशा सिर पर घरते थे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34