Book Title: Parshwa Pattavali
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 12
________________ (११) २३-प्राचार्य श्री कक्कसूरीश्वर पट्ट तेवीसवें कक्कसूरीजी, अदित्य नाग कुल भूषण थे। जिनकी तुलना करके देखो, चन्द्र में भी दूषण थे। षट्दर्शन के थे वे साता, वादी लज्जित होजाते थे। अजैनों को जैन बना कर, नाम कमाल कमाते थे। २४-आचार्य श्री देवगुप्तसूरीश्वर चार बीस पट्ट मूरि शोभे, देव गुप्त यश धारी थे। कुमट गौत्र उद्योत किया गुरु, जैन धर्म प्रचारी थे। शुद्ध संयम अरु तप उत्कृष्टा. ज्ञान गुण भण्डारी थे। सुविहित शिरोमणि जिनकी सेवा, करते पुन्य के भारी थे। २५-आचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर श्रेष्टिकुल अवतंस पच्चीसवें, सिद्ध सूरी विराजे थे। जैन धर्म के श्राप दिबाकर, गुण गगन में गाजे थे ॥ विद्या और सिद्धि ये दोनों, वरदान दिया यशधारी को। शासन का उद्योत किया गुरु, वन्दन हो उपकारी को॥ ___२६-आचार्य श्री रत्नप्रभ सूरीश्वर पट्ट छबीसवें रत्नप्रभ सूरि, पंचम रत्न प्रवीण थे। जैसे पञ्चानन सिंह को देखे. बादी सब भये दीन थे। देश विदेश में विहार करके नये जैन बनाते थे। उग्र विहारी शुद्ध प्राचारी, संख्या खूब बढ़ाते थे ।

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