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(६) १५-प्रोचार्य श्री सिद्ध सूरीश्वर पट्ट पन्द्रहवे सिद्ध सूरीश्वर, चिंचट गौत्र कहलाते थे।
आगम शानबल विद्या पूर्ण, जैन भण्ड फहराते थे। वल्लभी का भूप शिलादित्य, चरणे शीश झुकाते थे। .. सिद्धाचल का भक्त बनाया, जैनधर्म यश गाते थे।
१६-प्राचार्य श्री रत्नप्रभ सूरीश्वर पट्ट सोलहवें अतिशय धारी, रत्नप्रभ सूरीश्वर थे।
प्रतिभाशाली उग्र विहारी, अज्ञ हरण दिनेश्वर थे ।। प्रथम पूज्य का पढ कर जीवन, ज्योति पुनः जगाई थी।
करके नत मस्तक बादी का, धर्म की प्रभा बढाई थी। १७-प्राचार्य श्री यक्षदेव सूरीश्वर वि० सं० ११५ सप्तदश श्री यक्षदेव सरि, दश पूर्व शान के धारी थे। . ..
वज्रसेन के शिष्यों को दिना, मान बड़े दातारी थे। चन्द्र नागेन्द्र निवृति विद्याधर, कुल चारों के विधाता थे।
उपकार जिनका है अति भारी,भूला कभी नहीं जाता है।
१६-आचार्य श्री कक्कसरि वि० सं० १५७ .. पट्ट अठारहवें कक्क सूरीश्वर, अदित्य नाग उज्जारे थे। ... सहस्रों साधु और साध्वियां, जैसे चन्द्र संग तारे थे। बादी मानी अरू पाखण्डी देख दूर भग जाते थे।
सुर नर पति जिनके चरणो में, मुकर शीश नमाते थे।