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१६ - आचार्य श्री देवगुप्त सूरीश्वर सं० १७४ श्रदित्यनाग कुल श्राप दिवाकर, देवगुप्त यश धारी थे ।
सरस्वती की पूर्ण कृपा, सद् ज्ञान विस्तारी थे ॥ दर्शन ज्ञान चरण गुण उत्तम, पुरुषार्थ में पूरे थे ।
वन्दन उनके चरण कमल में, तप तपने में सूरे थे ॥
२० - आचार्य श्री सिद्धसूरीश्वर बीसवें पट्टधर सिद्ध सूरीश्वर, बिद्या गुण भन्डारी थे ।
शासन के हित सब कुछ करते, चमत्कार सुचारी थे । ज्ञान दिवाकर लब्धि धारक, अहिंसा धर्म प्रचारी थे । उनके गुणों का पार न पाया, सुरगुरु जिभ्या हजारो थे ।
२१ - आचार्य श्री रत्नप्रभ सूरीश्वर सं० १६६ श्रेष्टिकुल श्रृंगार अनोपम, पारस के अधिकारी थे ।
रत्नप्रभ सूरि गुण भूरि, शासन में यश धारी थे । योग विद्या में थी निपुणता, पढ़ने को कई आते थे ।
जैनों को जैन बनाये, जिनके गुण सुर गाते थे ।
२२ - श्रचाय श्री यक्षदेव सूरीश्वर संचेती गौत्र के थे वे भूषण, यक्षदेव बर सूरी थे।
ज्ञान निधि निर्माण ग्रन्थों के, कविता शक्ति पुरी थे । प्रचारक थे जैन धर्म के, श्रहिंसा के वे स्थापक थे ।
उज्ज्वल यश श्ररु गुण जिनके, तीन लोक में व्यापक थे ।