Book Title: Pandit Sukhlalji Parichay tatha Anjali
Author(s): Pandit Sukhlalji Sanman Samiti
Publisher: Pandit Sukhlalji Sanman Samiti

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Page 16
________________ पंडित सुखलालजी दूसरेको लिखाकर तो ग्रंथ-रचना की जा सकती है !” तुरंत ही उन्होंने कर्मतत्त्वज्ञान सम्बन्धी प्राकृत भाषाका 'कर्मग्रंथ' उठाया । घोर परिश्रम कर उस कठिन ग्रंथका अनुवाद, विवेचन और अभ्यासपूर्ण प्रस्तावना तैयार कर छपवाया । तव तो सभी विद्वान दांतों तले उँगली दवाने लगे। इस प्रकार पंडितजीकी लेखन-प्रतिभाका पंडितवर्गको प्रथम परिचय प्राप्त हुआ । उसीके साथ पंडितजीके ग्रन्थ-निर्माण की परंपरा प्रारंभ हो गई, जो अक्षुण्ण रूपसे आज तक चल रही है। .. तीन वर्षके पश्चात् पंडितजीने 'सन्मतितर्क ' जैसे महान दार्शनिक ग्रंथका संपादन-कार्य आगरामें रहकर आरंभ किया, पर उसी समय गांधीजीने अहमदावादमें गुजरात विद्यापीठकी स्थापना की और पंडितजीके मित्रोंने उन्हें विद्यापीठके पुरातत्त्व मंदिर में भारतीय दर्शनके अध्यापक-पदको ग्रहण करनेका अनुरोध किया । पंडितजीको गांधीजीके प्रति आकर्षण तो पहले से था ही, मनपसंद काम करते हुए गांधीजीके संसर्गमें रहनेका यह सुयोग पाकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए और संवत् १९७८ में अहमदावाद जाकर गुजरात विद्यापीठके अध्यापक बन गये । गुजरात विद्यापीठ और सावरमती आश्रम उन दिनों राष्ट्रीय तीर्थस्थान माने जाते थे । विद्यापीठमें अध्यापन-कार्यके लिये भारतभरके चोटीके विद्वान एकत्रित हुए थे। श्री. काका कालेलकर, आचार्य कृपालानी, आचार्य गिडवानी, मुनि जिनविजयजी, अध्यापक धर्मानन्द कोसम्बी, श्री. किशोरलालभाई मशरूवाला, प्रो. रामनारायण पाठक, श्री. रसिकलाल परीख, पं० बेचरदासजी, श्री. नानाभाई भट्ट, श्री. नरहरिभाई परीख इत्यादि अनेक विद्वानोंने अपनी वहुमूल्य सेवाएँ निःस्वार्थभावसे विद्यापीठको समर्पित की थीं। पंडितजी भी उनमें संमिलित हुए । यह सुयोग उन्हें बहुत पसंद आया । विद्यापीठमें रहकर पंडितजीने अध्यापनके साथ-साथ अध्यापक धर्मानन्द कोसम्बीसे पाली भाषाका अध्ययन भी किया । तदुपरांत पं० वेचरदासजीके सहयोगसे ८-९ वर्षका अविरत परिश्रम कर 'सन्मतितर्क' के संपादनका भगीरथ कार्य सम्पन्न किया । विद्वानोंने उस ग्रंथकी (मूल पाँच भाग और छठा भाग अनुवाद, विवेचन तथा विस्तृत प्रस्तावना आदिका) मुक्तकंठसे प्रशंसा की। डॉ. हर्मन जेकोबी, प्रो० लोयमन और प्रो० ल्यूडर्स जैसे प्रसिद्ध पश्चिमी विद्वानोंने भी उसकी तारीफ़ की । गांधीजीको भी उसके निर्माणसे बड़ा ही संतोप हुआ, और उन्होंने कहा-" इतना भारी परिश्रम

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