Book Title: Pandit Sukhlalji Parichay tatha Anjali
Author(s): Pandit Sukhlalji Sanman Samiti
Publisher: Pandit Sukhlalji Sanman Samiti

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Page 69
________________ घेरेसे बाहर निकाला, इसीने मुझे अनेक तरहकी पुस्तकोंका परिचय कराया, इसीने मुझे अनेक भापाओंसे जानकारी प्राप्त करनेके लिए प्रेरित किया । इसीने मुझे मेरी असुविधाओं आदिका कभी भान नहीं होने दिया। इसीने मुझे अनेक सहृदय, उदार और विद्वान मित्रोंसे मिलाया, इसीने मुझे छोटे-बड़े कई विद्याकेन्द्रोंकी यात्रा करनेका अवसर दिया । विशेष तो क्या, इसीने मुझे वृद्धत्वमें भी यौवन दिया और अद्यावधि जीवित रखा है।' और इसी दृष्टि और वृत्तिने हमें पंडितजीके प्रति हमेशा आकर्पित और श्रद्धावनत रखा हैं । समाजका, राष्ट्रका या व्यक्तिगत जीवनका किसी भी तरहका प्रश्न हुआ, हम उसे लेकर उनके पास पहुँच गये और उन्होंने समस्त पहलुओंसे उस पर विचार कर रास्ता बताया और वह रास्ता सर्वथा निरपेक्ष विचार के आधार पर वताया । उदाहरणस्वरूप, एक दिन मैंने उनसे जन्म-निरोधकी वैज्ञानिक विधियोंके संवन्धमें भी पूछ लिया । मेरे एक साथीने कहा कि इस प्रकारका प्रश्न पंडितजीसे पूछना सरासर तुम्हारी हिमाकत है; पर मैं वर्षोंसे पंडितजीको देखता एवं जानता आया हूँ । इस वारेमें उनके विचार जानना चाहता था। 'जैनदृष्टिसे ब्रह्मचर्य पर विचार' नामक उनका लेख पढ़ चुका था । पंडित जीने कितना स्पष्ट उत्तर दिया। उन्होंने कहा-'अधिक बच्चे पैदा होनेसे एक तो वीर्य-क्षय होता है और दूसरे समाजका क्षय होता है। ब्रह्मचर्यसे दोनों क्षय वच जाते हैं, परंतु जव वह संभव न हो तो संतति-निरोधके साधनोंसे कमसे कम सामाजिक क्षयको रोकनेका प्रयत्न तो करना ही चाहिये ।' इसी प्रकारसे कई अनेक प्रश्नों पर पंडितजीकी सुलझी हुई व्यापक दृष्टि हम देख चुके हैं । रोमाँ रोलांने एक दिन कहा था-'अपनी दृष्टिको व्यापक बनाओ, नहीं तो तुम जो कुछ सोचते हो, सव नष्ट हो जायगा । संसारके समस्त नये और स्वतन्त्र विचारोंको ग्रहण करो। आज तुम अपना घेरा बनाकर बैठे हो और उसमें तुम्हारा दम घुट रहा है । उस घेरेमें गौरव चाहे जितना हो, पर वह जड़ वन गया है। उस घेरेको तोड़कर वाहर आओ और खुली हवामें सांस लो ।' पंडितजीने अपने लेखनमें वारवार 'प्रत्यक्षसिद्ध वैज्ञानिक कसौटी', 'निष्पक्ष ऐतिहासिक दृष्टि' और 'उदार तुलनात्मक पद्धति का उल्लेख किया है । इस दृष्टिविहीन द्रष्टाकी यह दृष्टि कितनी अभिनन्दनीय है ! व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सबके कल्याणकी समन्वित साधना पंडितजीका इष्ट एवं अभिप्रेय है और उनका सारा अध्ययन, अध्यापन, चिन्तन एवं मनन इसी लक्ष्यको संमुख रखकर हुआ है । इस लक्ष्यको और इस लक्ष्यके पथिकको हम वारंवार श्रद्धापूर्वक अभिनन्दन अर्पित करते हैं। ता. १३-१०-५६, कलकत्ता ४१.

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