Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७५
लगा कलेजे बंद गुरोकारे-ए राग
।। पद. २२२ ॥
घट खोज्या बिन पार न आवेरे, दोस्त दोस्त मननी दोटे पुस्तक शोध्या वायु रोध्या, पमी खबर नहीं घरकी सद्गुरु संगे रहो नमंगे, लदो खबर अन्दरकी. घ०१ ज्यां त्यां माथु मारीनेरे, मूल्यो जमे पर घेर; परमां निजने शोधवोरे, श्रदो महा अन्धेर. घ० २ मृगलो कस्तुरीनी गंधे ग्रामो अवको दोगे, भ्रमणाए मूल वे ते मोटी, तोमे सो निज जोमे. घ०३ परनो कर्त्ता परनो दर्ता, निजगुण सहेजे धर्ता; आप स्वरूपे आप प्रकाशे, समजे लो जन तरता. ध प्रतम रुचि गुरुगम कुंची, लही उघेको ताळु, बुद्धिसागर अवसर पाकर, निज घरमां घनजाळु. ५
ย
माणसा ॐ शांतिः
लगा कलेजे बंद गुरोकारे-ए राग.
॥ पद. २२३ ॥
सु निज देशी बचन हमारारे, साथी जमतो तुं परदेशे परदेशे गाळे दीन क्लेशे, घमी न सुख विश्रामा, तमके बांये सुख नहिं कांये, वरता नहि एक ठामा १
•
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210