Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 207
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८ बुद्धिसागर पुरुष एवा पाकशे, त्यारे थाशे जैनधर्म नारजो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only समजु. १३ साणंद. धवजी संदेशो कहेजो श्यामने - ए राग : ॥ लकाधिपतियोने दितशिक्षा. २४४ ॥ हे लक्षाधिपतियो जगमां शुं रळ्या, क्यांची आव्याने क्यां जाशो नव्यजी; शाने माटे जन्म्या जागी जाणजो समजो जगमां शुं सारु कर्तव्यजो. हे लक्षाण ? शेर एक दारुनो निशो जे चढे, लाखोप तिने तेवुं धननुं घेनजो, धनना घेने घेरायो अहंकारमां हे ला ३ एवा नरने समतानुं नहि चेनजो. हे लक्षा० २ गामी वामी लामीमां गुलतान बे, पैसा माटे पाप करे निशदीनजो; वैराग्ये मन वाले क्यांथी प्राणिया, व्यापारे वर्ते वृत्ति लयलीनजो. पैसाने परमेश्वर मान्यो प्रेमथी स्त्रीने गुरु मानी करता तस सेवजो, रात दीवस लोने ललचायो लालचु; एक चित्ती सेवे नदि जिनदेवजो, हे लक्षा० ४ धर्म कर्मने मुकी क्यां प्रथमानुबो,

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