Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 209
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०० पामो जल्दी शिवसंपद सुखदायजो. हे लक्षा. १० ॐ शान्तिः अलख देशमे वास दमारा-ए राग. ॥ योग पद २४५ ॥ H Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रवघट घाट चळंगी दमने, ब्रह्मगुफा में वास कीया; माया ममता सब परहरके, देश हमारा जीतलीया. १ त्रिवेणीना तिरे नाइ, पाप पंक सब मार दीया; जैदी षटचक्रोका मारग, धर्म रत्न उपाय लीया. ०२ मेरा मारग न्यारा सबसे, पण शिव मारग नहिन्यारा वीतरागका बचन प्रमाणे, समजेतो जगकुं प्यारा अ. ३ सच्चा दम कहते बाना, समचे ज्ञानो मस्ताना, मस्तानाका मारग मुक्ति, शुं जाणे ते दीवाना. श्र० ४ तोर्थंकरकी बाणी दोरो, पकम चढो मुक्तिमेले; मारग सच्चा साहिबसच्चा, विश्वासा तुं घर दीले. अण् सत्य सुनाया जे हम पाया, गुरुगमता लेजो प्राली; समकितो सदगुरु प्रतापे, बात रहे नहि को बानी, अ० धन धम जगमां एवा संतो, संगत तेनी बहु सारी; बुद्धिसागर चढते जावे, हुं जान तस बलीदारी. प्र०७ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः समाप्त. For Private And Personal Use Only

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