Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 204
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रए अनेकान्त दर्शनथी आतम नळखे, अन्तर्मुखता वृत्तिनी तब होयजो आत्मस्वरुपे खेले शु६ स्वन्नावथी, तत्वरमरायी नमे न कोने कोयजो. सदगुरु. ६ गुरु वचनामृत पामे शिष्य सुपात्रजे, गुरु नक्तिश्री शक्ति प्रगटे सर्वजोः सद्गुरुगमथी ज्ञान सफलता जाणोए, नासे तेथी विषय वासना गर्वजो. सदगुरु. ७ गुरुद्वेषी गुरुनिन्दक पापं। प्राणोप्रा, धिक धिक तेनो मानवनव अवतारजो; बुद्धिसागर सदगुरु दर्शन दोहीलं, पापी प्राणो नतरे जवनी पारजो. सदगुरु. साणंद ॐ शांतिः ३ नधवजी संदेशो कहेजो श्यामने-एराग. ॥ पुरुषना धर्मविषे, २४३ ॥ समजु नरने शिखामण ने सानमा, करे नहि पर ललना साथे प्यार जो हांसो उठा परस्त्री साथे नहि करे, कामी नरनो धिक्क धिक्क अवतारजो. समजु. १ लम्बीलो कूल कलंकी नहि हुबे, विचारोने बोले सारा बोलजो, For Private And Personal Use Only

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