Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 192
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०३ बुद्धिसागर अहो धन्य मनुष्यन्नव, समजे तेनी आ वेळारे. आतम ५ विजापुर. ॐ शान्तिः ॥अध्यात्म पद ३४ ॥ असंख्य प्रदेशी क्षेत्र तारूं, नपदेश वृष्टिधार श्रातम. हारे वीरा आजनो दीन रळोयात. देजी० १ क्रियानी करी कोदाळी ने विवेक बांधो पाळ. आतम. हारे वीरा कुबुझिनां झांखरां काढ. देजी० २ शुभ ज्ञानने ध्याननुं त्यां, रुहुँ हळतो जोम. आतम. हारे वीरा अलखनां बीज ववराव, देजी० ३ वाम करो समकितनी त्यां, सदगुरु टोयो मेल. श्रा हारे वीरा नगुरां पंखी नमाम.. हेजी० ४ अनुन्नवरसनी पुष्टि थातां, पाकी खेती पुर. आतम. हारे वीरा सघळी फळी तब आश. हेजी० ५ आत्मधर्मनी खेती पाकी, नागी नवनी नख. आ. हारे वोरा चुकव्यां देवां तेणीवार. हेजी ६ आप स्वन्नावे थगयो त्यां, जीव ते शीव स्वरुप. प्रा. हारे वोरा बुद्धिसागर गुण गाय, हेजी ७ पेयापुर ॐ शांति. For Private And Personal Use Only

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