Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ केवलनाणदिवायरु, ज्योतिज्योतेहो मळोया गुणखाल. मनमंदिर मेळापथी, मुजसत्ताहो तुज सरखी थाय; बुद्धिसागर सेवना, साध्यसिदिो साधक परखाय. ४ माणसा. को एक भुमीयाने नावरे अांबो अमरजी-ए राग. ॥योग पद २३३ ॥ को एक योगियो विचारेरे, प्रातम अमर रेजो, जरा विचारी देहनगरीमा जुवो, त्यारे अनुन्नव आतम जमशेरे हेजी असंख्य प्रदेशी तखते बेगे, ज्ञानिजन हाथमांहि चमशेरे. प्रातम० १ काया मन वाणी थकी जुदो पामी धरो घट, ध्यान सदा सुख वासी रे. हेजी. गंगा यमुना तीर्थ सरस्वति, अन्तर प्रगटे काशीरे. दील दरीयामां जुवो अमर दीवो ने नाइ, कबहु न काळे नलवायोरे, हेजी. तीननुवन जस अंदर नासे, तेहि तुं अलख लखायोरे नहि नाम रुप जेनां ज्योतिरुप तेतो साहि, निजमां निज परखायोरे. हेजी. निर्जय देशी शुभ प्रदेशी, झानिजन सोहि बतलायोरे. घरी ध्यान एकतान लदी निजधर नान, सोहि गुरुने सोहि चेलारे. हेजी. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210