Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 185
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ सगां संबंधी निज घर नूल्यो, परधर कुःखमा डुल्यो; दुःखमां सुखनी पाश धरीने,फोगट फुलण फुल्यो. २ निज घर नारी रोती नारी,तेने ते विलारी; दुःखमां दीवस गाळे गरीबमी, गइ अक्कल क्यां तारी.३ लाख चोराशी बजारमांहि, नमोश घाटो घाटे; बुद्धिसागर अवसर. पाकर, वळजे निज घर वाटे. ४ माणसा. लगा कलेजे बंद गुरोकारे-ए राग. __ गुरु महिमा पद. १२४ गुरु विना को ज्ञान न पावरे,वांचो पुस्तक पोथीपानां, गुरुनो श्रदा गुरुनी नक्ति, गुरु आज्ञा दोल राखे । कुगुरुनोनरमाव्योनमे नहि,सो अनुन्नव रस चाखे.१ नपरथी गुरु नाम धरावे, मनमां नही विश्वासा; प्रापमतिथी मनमां महाले, ते नहीं गुरुका दासा. २ माथा साटे माल जेवी, गुरुनी नक्ति करता; गुरु वचनामृत पीतां प्राणी, अनुभव सुखमां वरता.३ कालादिक सामग्रीएरे, वर्ते सज्जन प्राणी बुद्धिसागर कोइक वोरला, समजे गुरुनी वाणो. ४ माणसा. ॐ शान्तिः For Private And Personal Use Only

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