Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 187
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ទច लगी समाधि मिटग व्याधि, ज्योति ज्योत मिलाया रत्नत्रयीनी स्थिरता गजे, सोहि चरण परखाया. ३ मगनमण्मलमे नोबत बाजे जलधर नन्न ज्युं गाजे, ताळी अनुजवरसनी लागी, तखते स्वयं विराजे. ४ स्थिरता सुखमां इंसा खेले, नेद तस विरला लेता, बुद्धिसागर श्रात्म नजागर, दशा लहे ते चेत्या. को.५ माणसा ॐ शांतिः ॥ पद २२७ ॥ आतम तत्व अनादिरे, आदि सिपणे तस पान; निश्चयनयथी निर्लेपी जे, आप स्वरुपे गान. पा १ नूल्यो पण ते नहि नूलाए, चिदानन्द पद वासी काशी जमना गंगा घटमां, मिटग नदासी. प्रा०२ झाता शेयने शान त्रिपुटी, नित्यपणे प्रकाशी जन्म मरणनी पुग्धा मिटगइ, दीलवर्ति नदासी, ३ सहु रुदि मुज घटमां नासी, कोने दन साबाशो; बुद्धिसागर प्रातमझाने, मिटे सकल खराशि. ४ माणसा. ॥ अवळी वाणी. ॥ पद २२७ ॥ पीपळाना कामपर बेगं पंखी दोयरे, तेमां गुरु चेलो एक ज्ञानथी जोयरे जीजीजी० १ For Private And Personal Use Only

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