Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 183
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ परमारथ पामे सो पूरा, नहीं वळे कंश गप्पे. शूण १ अविहम प्रीत पतिशुं लागी, निज्ञ गई अब जागी; जल बीन मिन रहे न विखंटुं, राग गयो पण रागी.२ कान आंख बिन मारो वाल्हम, सुणतो ने वळी निरखे रुपातीत पण म्हारो स्वामी, रुपारुपीकुं परखे. ३ सहज स्वन्नावे अनुन्नव रसकुं, पीतां चढे खुमारी बुझिसागर कोटि प्रयत्ने, नतरे नहीं उतारी. शू०४ माणसा. शांतिः लगा कलेजे बंद गुरोकारे-ए राग. ॥पद. २१ ॥ निक्षुक होकर करीनवारे,ठेर ठेर आशा की सगा लटकत नटकत जलो पमियो,गम स्थिर नहीं ठरीयो राजा पोते निक्षुक ब्रमणा, बुद्धि दुःखनो दरियो. १ मागे तेने कदी न मळशे, मळशे ते नवी रहेशे; आप आपका खोजे घटमां, आनन्द अनहद सेशे.२ ध्यान समाघि घटमें लागे, कुघा पीपासा लागे। रंगाए ते कदी न रागे, श्वासोश्वास जागे. नि ३ पाशा तृष्णा जोर दगवी, चित्त निजपदमा राखे, बुद्धिसागर निक्षुक सच्चा, अनुन्नव अमृत चाखे.नि. माणसा. शान्तिः For Private And Personal Use Only

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