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लगा कलेजे बंद गुरोकारे-ए राग
।। पद. २२२ ॥
घट खोज्या बिन पार न आवेरे, दोस्त दोस्त मननी दोटे पुस्तक शोध्या वायु रोध्या, पमी खबर नहीं घरकी सद्गुरु संगे रहो नमंगे, लदो खबर अन्दरकी. घ०१ ज्यां त्यां माथु मारीनेरे, मूल्यो जमे पर घेर; परमां निजने शोधवोरे, श्रदो महा अन्धेर. घ० २ मृगलो कस्तुरीनी गंधे ग्रामो अवको दोगे, भ्रमणाए मूल वे ते मोटी, तोमे सो निज जोमे. घ०३ परनो कर्त्ता परनो दर्ता, निजगुण सहेजे धर्ता; आप स्वरूपे आप प्रकाशे, समजे लो जन तरता. ध प्रतम रुचि गुरुगम कुंची, लही उघेको ताळु, बुद्धिसागर अवसर पाकर, निज घरमां घनजाळु. ५
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माणसा ॐ शांतिः
लगा कलेजे बंद गुरोकारे-ए राग.
॥ पद. २२३ ॥
सु निज देशी बचन हमारारे, साथी जमतो तुं परदेशे परदेशे गाळे दीन क्लेशे, घमी न सुख विश्रामा, तमके बांये सुख नहिं कांये, वरता नहि एक ठामा १
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