Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

View full book text
Previous | Next

Page 170
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६१ धर्मने ढोंग करीने मान्यो, आप मतिथी चाल्यो, आयुष्य अवधि पुरी श्रातां वालो मालो हाल्यो. प्र० ४ बेल बोलो ने फरतो ठमठम करतो म्हाल्यो, फक्कh श्रश्ने फुली फरतो, जमने ऊरुपी काल्यो. प्र०५ जीवा जाणी लेने जीनने, पापीने जीन तारे, बुद्धिसागर जीन नक्तिथी, उतरो पेली पारे. प्रभु० ६ सालंद. ॥ राग मराठी साखी २०६ ॥ जुली जव भ्रमणा झंझाले, फागट श्रायु गालो, मानो घर महेलोने मारा, पण जरशो उचाळा; अरे क्यांची अक्कल नंधी सुकी, कदो वन्ध्या माय न इझी. क्युं कजीयो कंकासो करता, आमा अवळा फरता, जन्म्या तेने मरतुं माथे, मरवा जेवा खरता, प्ररे० २ कुटुंब कवीवो मारा मानी, स्वारथमां सपमायो, नोति त्यागी अवगुण रागी, लक्ष्मीथी ललचायो ३ लोने लक्षण लघळां खोयां, अभिमान बीज बोयां, धर्मवात तलजार रुचे नदि, कर्यां कर्म नही जोयां. ध साधु देखी बटकी जातो, पापीथी दरखातो, निंदा लवरी वैर झेरनी, करतो निशदिन वातो. ५ चेती लेने पामर प्राणी, सद्गुरु शरणुं तारे, बुद्धिसागर सत्संग मथी उतरो पेली पारे; लेजो ल्हावारे मानव जवनो प्राणी. साणंद. For Private And Personal Use Only अरे. ६

Loading...

Page Navigation
1 ... 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210