Book Title: Padmavati Purval Jain Directory
Author(s): Jugmandirdas Jain
Publisher: Ashokkumar Jain

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Page 267
________________ श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी ५५५' कुछ दिन बाद किसी ने आकर इनसे मुहूर्त पूछा, तो आपने मौखिक ही बतला दिया । पिताजी ने कहा कि पंचांग बिना देखे ही मुहूर्त बता दिया, अशुद्ध हो तो १ इन्होंने उत्तर दिया कि - किंचित् मात्र अन्तर नहीं आ सकता ।" पिता ने जब पंचाङ्ग देखा, तो मुहूर्त बिल्कुल ठीक था । इन्हीं दिनों हाथरस का मेला हुआ । उसमें चारोंओर के जैन परिवार सम्मिलित हुए। इनका भी परिवार गया था। योजनानुसार एक दिन आर्य समाज के विद्वानों से शार्थ का भी कार्यक्रम था। एक विशाल मंच पर कुछ आर्यसमाजी विद्वान उपस्थित थे । उनसे वाग्ययुद्ध के लिए कुछ जैन गृहस्थ भी एकत्र हुए थे । जैन गृहस्थों को धर्म का ज्ञान तो था किन्तु संस्कृत के ज्ञान का अभाव था । शाखार्थ आरम्भ हुआ। दर्शकों की आपार भीड़ को पार करके पं० पन्नालालजी भी मंच पर पहुँच गये । दिव्य शरीर, प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व देखकर सब लोग चकित थे कि यह कौन है ? जैन विद्वान बहुत सोच समझ कर समाजियों के उत्तर दे पाते थे । किन्तु पंडितजी ने पहुॅचकर धारा प्रवाह संस्कृत में तर्कों का उत्तर देना आरम्भ किया। जहां प्रश्न हुआ कि पंडितजी ने उसका तत्काल सप्रमाण उत्तर दिया और अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया । पढ़े अनपढ़े यह सभी लोग भांप लेते थे कि किसका प्रश्न और उत्तर ठीक है । अन्त मैं समाज लोग निरुत्तर होकर चले गये। अब भीड़ ने पंडितजी को घेर लिया । परिवार और ग्राम वालों को अपार हर्ष हुआ। पिता के आनन्द का तो कहना ही क्या था । अव सेठों मैं होड़ लग गई कि पंडितजी को कौन अपने यहाँ ले जाय । इस समस्या का समाधान पंडित जी ने तत्काल ही कर दिया। उन्होंने कहा कि जो सेठ मुझे पालकी में बैठा कर स्वयं अपना कन्धा लगाकर ले जा सके, ले जाय । इस कठिन परीक्षा में सेठ जम्बूप्रसाद सहारनपुर ही सफल हो सके। ra पंडितजी का निवास स्थान सहारनपुर हो गया और यही से उनकी प्रतिभा का प्रकाश फैला । आज दिन सहारनपुर मे जो धर्म की प्रभावना है, उसके मूल मे पंडित पन्नालाल न्यायदिवाकर की बहुत बड़ी देन है । अन्तिम दिनों में पंडितजी फिरोजाबाद आकर बस गये जहाँ उनकी विशाल हवेली आज भी खड़ी है। इनके तीन पुत्र और एक पुत्री हुई । केवल बड़े पुत्र के ही सन्तान है। पंडितजी को एक बार किसी मुकदमे मे जैनधर्म के प्रमाण के निमित्त अदालत में जाना पड़ा। न्यायाधीश ने प्रमाण के प्रन्थों को न्यायालय में मंगाया तो पंडितजी ने कहा

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