Book Title: Padmavati Purval Jain Directory
Author(s): Jugmandirdas Jain
Publisher: Ashokkumar Jain

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Page 276
________________ ५६४ श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी खिलाफ संग्राम में उतरता है, तब वह विजयश्री वरण करके ही लौटता है। आपका विजयी-जीवन इसका ज्वलन्त प्रमाण है। आपने कई युद्धों में भाग लिया और हर मोर्चे पर विजय प्राप्त की। आप अपने सैनिकों एवं उच्चधिकारियो में अत्यन्त प्रिय रहे हैं। आपने सैनिक क्षेत्र में जितनी सफलता एवं लोक प्रियता प्राप्त की है, उतनी ही समाज में भी आपकी प्रतिष्ठा है। आप स्वजाति जनों की आजीविका तथा सुख समृद्धि का प्रयास बरावर करते रहते हैं। पूर्वाचार्यों के अनुसार धर्म पर चलना तथा प्रत्येक स्थिति में धर्म का पालन एवं अनुसरण करना,इसका आप निरन्तर ध्यान रखते हैं। आपके विचारानुसार धर्म आत्मा है । अतः आत्मा द्वारा प्रत्येक समय एवं स्थान पर धर्म साधा जा सकता है। आप वीरता, दया तथा निर्मलता की प्रतिमूर्ति है। आप प्रत्येक व्यक्ति से अपने स्वजनों जैसा व्यवहार करते है। आपकी भापा अत्यन्त मधुर तथा विनोदपूर्ण है। आप उच्च विचार युक्त आत्म-विश्वासी पुरुष है। आप समय समय पर खुले दिल से दान-धर्म करते है। कोटला श्री मन्दिर जी को आपने अपनी जमीन देकर मन्दिर जी में सौ रुपया मासिक की स्थाई आमद का प्रबन्ध कर दिया। अब वहाँ धर्मशाला भी बन गई है। ___आपका स्नेह एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार अकस्मात् मानव को अपनी और आकर्षित कर लेता है। अभिमान आपको छू तक नहीं सका है। आप स्पष्टवादी तथा उदारमना सुसंस्कृतज्ञ पुरुष हैं। समय निकाल कर स्वधर्म-ग्रन्थों का बरावर अध्ययन करते रहते हैं। आपका जीवन राष्ट्र का गौरव तथा स्वसमाज का आभूषण है। समाज के सर्वप्रिय विवेकी व्यक्तियों में आपकी गणना होती है। आपकी श्रीमति पुत्तोरानी जी भी आपके अनुरुप ही वीराङ्गना और समाज की आदर्श महिला है । कौटुम्ब-कुशलता, व्यवहार निपुणता एवं लेह शीलता आपके स्वाभाविक गुण है । समाज-सेवा, धर्मनिष्ठा आपके अपने मौलिक व्रत हैं। आपके दो सुपुत्र श्री सुरेशचन्द्र जी जैन तथा श्री कृष्णचन्द्र जी जैन हैं। श्री कृष्णचन्द्र जी डी० सी० एम० के वस्त्रों के व्यवसायी है तथा दूसरे श्री सुरेशचन्द्र जी पैट्रोल पम्प का कार्य सम्भालते है। दोनों युवक अपने पिता तुल्य सज्जन तथा नम्र और वंश परम्परागत शुद्ध आचार-विचार के स्वधर्म पालक हैं।

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