Book Title: Padmavati Purval Jain Directory
Author(s): Jugmandirdas Jain
Publisher: Ashokkumar Jain

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Page 277
________________ श्री पद्मावती पुरखाल बन डायरेक्टरी स्व० श्री वनारसीदासजी जैन वकील, जलेसर स्व० श्री वनारसीदासनी जैन समाज के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक थे । आपके पूज्य पिता श्री मुन्शी हरदेवप्रसादजी अपने समय के ख्यातनामा महापुनप थे। इन्हीं के घर में आपका जन्म ६ जून १८७८ को जलेसर में हुआ था। श्री बनारसीदासजी बाल्यावस्था से ही प्रतिभापूर्ण व्यक्तित्व के भाग्यशाली पुरुष थे। आपने सन् १९०० में श्रेष्ठ श्रेणी में इलाहाबाद से थी० ए० किया। १९०८ में वकालत पास की और १९१७ में सरकारी वकील नियुक्त हुए। आप जीवन पर्यन्त अवागढ़ राज्य के कानूनी सलाहकार रहे और राज्य के प्रतिनिधि के रूप मे महाराजा दरमंगा, महाराजा कुंच, महाराजा ग्वालियर. महाराजा करौली, बीकानेर आदि भारतीय राजाओं एवं अनेक राजकीय पदाधिकारियों आदि से आपका निरंतर सम्पर्क रहा, एक रूप में वे सब आप के मित्र रहे। आप अपने समय के अन्यन्त प्रसिद्ध वकील थे। ज्ञान एवं प्रतिष्ठा के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाने पर भी आपको अपने धर्म में अटूट श्रद्धा थी। सन् १९१९ में आप श्री पद्मावती पुरवाल दिगम्बर जैन परिषद् के महामन्त्री के पद पर आसीन हुए थे। आप जैन गजट के सम्पादक भी रह चुके हैं इन पदों पर रहते हुए आपने जन जाति की अनिर्वचनीय सेवाये की है। कार्य में अत्यन्त व्यस्त रहने पर भी आप प्रातःकाल चार बजे उठकर स्वाध्याय एवं सामायिक करते थे। राजसी-सम्पर्क में रहने पर भी आप में निशि भोजन त्याग, शाकाहार एवं शुद्धाहार जैसे सात्विक गुण वने रहे। आपने कभी किसी व्यक्ति को मांस और मदिरा का भोजन नहीं दिया। एक बार अपनी शादी के अवसर पर अवागढ के राजा ने शेर का शिकार किया तब इस खुशी में दरवार लगा-सभी दरवारियों ने विभिन्न प्रकार की भेटें समर्पण की, किन्तु प्रमुख दरवारी होने पर भी आप उस समारोह में समिलित नहीं हुए और कहला भेजा कि हिंसा में हम किसी प्रकार की खुशी नहीं मनाते । जब आपने अपनी एकमात्र सन्तान रायसाहेब श्री नेमीचन्द्रजी को उच्च शिक्षा हेतु वाहर भेजना पड़ा, वो उनके साथ एक जैन रसाइया और एक नौकर भेना तथा एक छात्र के निवास वाला कमरा दिलाया। इन सब कार्यों की मूलभूत भावना यह थी कि पुत्र पर जैन संस्कारों को यथाविधि बनाये रखा जा सके। ___अपकी धर्मपत्नी श्रीमती जयदेवी बड़ी ही सीधी-सार्धा और सरल स्वभाव की महिला थी। ये पाक शास्त्र में बड़ी निपुण थी । इनकी धर्म-भावना परिपुष्ट एवं वृदय निर्मल था। श्री वनारसीदासजी का निधन अप्रैल सन् १९२० मे अल्प आयु में ही हो गया। आपका शोक सारे ही समाज को शोकातुर एवं दुखी वना गया।

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