Book Title: Padmavati Purval Jain Directory
Author(s): Jugmandirdas Jain
Publisher: Ashokkumar Jain

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Page 287
________________ श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी ६१३ स्व० श्री बाबूलालजी जैन, कोटकी आपका जन्म सन् १८८२ ई० में हुआ था। आपके पिताश्री का नाम था श्री रामप्रसादजी जैन । आपकी जन्मभूमि जिला आगरा अन्तर्गत कोटकी है। आपकी शिक्षासाधारण रूप में हुई थी। आपका झुकाव धर्मे की ओर विशेष था। अतः बाल्यावस्था से ही आप धर्मग्रन्थों का अध्ययन करने लगे थे। आपका धर्मज्ञान इतना गहन और पुष्ट हो गया था कि बड़े-बड़े विद्वान लोग आपकी बात को समझने की चेष्टा करते थे। आपने न्यायतीर्थ एवं शाखी पाठ्यक्रम का अध्ययन विधिवत् किया था। ___आपके यहाँ सर्राफा तथा जमींदारी का प्रमुख व्यवसाय था। आप सच्चे व्यापारी तथा ईमानदार व्यवसायी थे। आपका विश्वास दान प्रणाली में विशेष था। अतः आपने भारी मात्रा में गुप्तदान किया है। आप गद्दी पर शास्त्र प्रवचन करते थे। "जैन-तिथि दर्पण" के प्रकाशन की नीव डाली, जो अवागढ़ में आज भी विकसित अवस्था में चली आ रही है। कोटकी मे आपने रथयात्रा कराकर धर्म प्रचार में भारी योग दिया है। आप श्री वीर जयन्ती-उत्सव के प्रेसीडेन्ट भी रहे । आपने अपने जीवन में प्रमुख तीर्थों की यात्रायें भी की थी। श्रीमान राजा साहेब के सत्संग की अध्यक्षता आप ही किया करते थे। इस पद पर आप द्वारा अहिंसा का विस्तृत रूप से प्रचार हुआ है। एक रूप में आप जैनधर्म के कर्मठ प्रचारक तथा उत्तम प्रसारक थे। ___ अक्टूबर १९४२ ई० में अवागढ में आपका देहावसान हो गया। आपके निधन का शोक सारे ही समाज को सन्ताप देने वाला था। अतः समाज का प्रत्येक वालक आपके वियोग में शोक सन्तप्त होगया था। आपकी श्रीमती विटोला देवी जैन भी धर्मबुद्धि की महिला थीं। आपके सुपुत्र श्री कमलकुमार जो जैन भी आपकी भाँति ही धर्म एवं समाज-सेवी भावना के मिलनसार सुधारवादी महानुभाव है। स्व० श्री गुलजारीलालजी जैन, कोटकी आपके पिताजी का नाम श्री रामप्रसादजी जैन था। आपका जन्म कोटकी में सन् १८८४ में हुआ था। आप धर्मशास्त्रों में रुचि रखते थे। आपने अपनी ज्ञानवृद्धि के लिए बहुत से ग्रन्थों का अध्ययन किया था। ... आपको रथ यात्रा करवाने का बहुत शौक था। आपने एक विशाल धर्मशाला का निर्माण भी कराया है। यह धर्मशाला बहुत ही सुविधा पूर्ण एवं साधन-सम्पन्न है। आपने इस धर्मशाला के साथ कुछ जमीन भी लगा दी है। ५०) सालाना स्थाई रूप से कोटकीदिगम्बर जैन मन्दिरजी को वहीं के आम के बाग की आमदनी से दान दिया जाता है। आप बड़े ही दयालु स्वभाव के दूसरों की विपति में काम आनेवाले सेवाभावी महानुभाव थे। आप कांग्रेस के भी सक्रिय सदस्य थे। आपको कई वार मुखिया बनाया गया, किन्तु आपने त्याग-पत्र दे दिया।

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