Book Title: Padmavati Purval Jain Directory
Author(s): Jugmandirdas Jain
Publisher: Ashokkumar Jain

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Page 278
________________ ५६६ श्री पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी स्व० श्री लाला वासुदेवप्रसादजी जैन रईस, टूण्डला . आप स्व० श्री ला० भाऊमलजी जैन नौसेरा (मैनपुरी) के वंशधरों में से थे। आपके पिता श्री ला० शिखरप्रसाद जी जैन समाज के जाने-माने सज्जन थे। आप अपने भ्राताओं श्री भगवानस्वरूपजी जैन भू० पू० चेयरमैन टाउन ऐरिया कमेटी श्री श्रीरामजी जैन और श्री सुनहरीलालजी में सब से ज्येष्ठ थे। ___ आपका सार्वजनिक जीवन अत्यन्त सम्मानित और आदर्श रहा है । आप अनेक वर्षों तक विद्या संवर्धिनी समिति टुण्डला के प्रधान रहे। इस संस्था के अन्तर्गत धर्मशाला, पुस्तकालय एवं पाठशालाएं स्थापित हुईं। आपकी सतत् लगन एवं श्रम के कारण पाठशालाठा० घीरीसिंह हाईस्कूल के रूप में तथा कन्या पाठशाला राजकीय कन्या विद्यालय के रूप में परिणत हो गई। इन दोनों ही संस्थाओं का शिक्षा क्षेत्र में प्रशंसनीय योग रहा है आप द्वारा लगाए गए यह छोटे छोटे पौधे आज विस्तृत-वृक्ष के रूप में प्रफुल्लित हैं। महावीर दिगम्बर जैन विद्यालय, जिनेन्द्रकला केन्द्र एवं अन्य अनेकों जैन मन्दिरों आदि के आप संस्थापक तथा संचालक थे । आपके सहयोग से अनेकों सामाजिक सस्थाएँ उन्नति के शिखर पर पहुँची । श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र ऋषभनगर (मरसलगंज) कमेटी के आप सभापति रहे । इस क्षेत्र पर आपने अपने कार्यकाल में दो बार पञ्चकल्याणक बिम्ब प्रतिष्ठाएं कराई। धर्म रक्षक एवं समाज-सुधार सम्बधी अनेक संस्थाएं जैसे अ०भा० दि० जैन धर्म संरक्षिणी महासभा एवं अ० विश्व जैन मिशन आदि को धर्मप्रचार में पूर्ण सहयोग प्रदान किया। आप सार्वजनिक जीवन में अत्यन्त लोक प्रिय प्रतिभा के श्रेष्ठ पुरुप सिद्ध हुए। आपका व्यक्तित्व आकर्षक और मोहक था । आपका सरल स्वभाव और मधुर-न्यवहार आपकी अपनी विशेषता थी। आप अ० भा० पद्मावती पुरवाल महासभा के अनेक वर्षों तक सम्माननीय सभापति रहे। आपके इस सेवाकाल में समा ने सुधार-दिशा में अच्छी प्रगति की और संगठन की दृष्टि से भी सराहनीय एवं प्रशंसनीय कार्य किया। आपका सफल एवं महत्वपूर्ण निर्णय समाज के लिए परमोपयोगी होता था। समाज को सर्वतोभावेन उन्नत करने की कामनाएँ आपने अपने हृदय में संजो रखो थीं। समाज-सेवा के लिए आप प्रतिक्षण तथा प्रत्येक परिस्थिति में उद्यत रहते थे। समाज के महान तथा अग्रसर पुरुषों में आपकी गणना को जाती है। आपके क्रमशः दो विवाह हुए प्रथम जामवती देवी के साथ एटा में तथा दूसरा महादेवी के साथ हिम्मतपुर में । यह दोनों महिलाएं धर्म में पूर्ण आस्थावान तथा आदश महिला रत्न थी।

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