Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 13
________________ स्वकथ्य साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी ने कहा है- 'साहित्य' समाज का दर्पण ही नहीं बल्कि दीपक भी होता है, जो आने वाली पीढ़ियों का युगों-युगों तक पथ प्रदर्शन करता है। उनके इस मत से मैं भी पूर्णरूपेण सहमत हूँ और इस पुस्तक में यही विनम्र प्रयास रहा है कि यह मानव जीवन का दर्पण और प्रेरणा प्रकाश का प्रदीप बन सके। प्रस्तुत कृति में मेरा अपना कुछ भी नहीं है। ज्यादातर सामग्री तो पू. प्रवर्तक गुरुदेव श्री जी के प्रवचनों से संग्रहीत की गई है और शेष विभिन्न महापुरुषों की वाणी से संकलित है। अत: मैं अपने आराध्य गुरु भगवन् के प्रति तो कृतज्ञ हूँ ही, साथ ही उन सभी महापुरुषों का भी ऋणी हूँ जिनके विचार बिन्दुओं को मैं अपने ● भावों का सांचा दे सका हूँ। sia साथ मैं अपने प्रिय गुरु भाइयों का व उन सभी सहयोगी साथियों का भी आभारी हूँ जिनका इस कार्य में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मुझे स्नेह सौजन्य प्राप्त हुआ है। और अंत में साधुवाद देना चाहूँगा प्रस्तुत पुस्तक में अर्थ सौजन्य प्रदान करने वाले गुरुभक्त उदारमना श्री रामकुमार जी जैन व युवा साहित्यकार श्री. विनोद शर्मा जी को, जिनके श्रम व धन से यह पुस्तक अपने सुंदर आकार में आप सबके हाथों तक पहुँच सकी है। बस अब आप सबसे यही स्नेहाग्रह है कि - इस 'पद्म-पुष्प' को अपने हृदय सरोवर में प्रगट होने का अवसर दें तो मैं निसदेह कह सकता हूँ कि फिर न केवल आपका जीवन बल्कि पूरा विश्व ही सद्गुणों की उस 'अमर सौरभ' से सुरभित हो उठेगा। ऐसा शीघ्रातिशीघ्र संभव हो सके, इन्हीं मंगल मनीषाओं सहित । (७) - 'अमर शिष्य' वरुण मुनि (एम.ए.)

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