Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 11
________________ उपरान्त भी व्यक्तित्व अर्थात् सद्गुण उसे स्मृति-जगत् में अमर बनाये रखता है। व्यक्ति का यथार्थतः मूल्यांकन व्यक्तित्व अर्थात् गुण-गौरव को ही अपना प्रधान आधार चयनित करता है। वास्तविकता यह है कि सद्गुण-सौरभ ही मनुष्य की श्रेष्ठता और ज्येष्ठता को प्रमाणित करता है और वह सामान्य-स्तरीय जनों से ऊपर उठाकर उसके लिये विशिष्ट एवं । वरिष्ठ स्थान बना देता है। इसी सन्दर्भ में एक और तथ्य ज्ञातव्य है कि यह समूचा संसार पंक रूप है और मनुष्य पंकज की उपमा से उपमित है, अलंकृत है। इस पंकज-पुष्प की अमर, मधुर सौरभ के रूप में, जिनेन्द्र पूजा, गुरु पर्युपासना, सत्त्वानुकम्पा, शुभ पात्रदान, गुणानुराग और आगम श्रुतिराग ये सद्गुण परिदृश्यमान हैं। उक्त सद्गुणों की सौरभ वह सौरभ है, जो सर्वथा अमिट है, अमर है। गणनातीत रूप से रात और दिन, मास एवं वर्ष कालरूपी महानदी के अजस्र प्रवाह में प्रवहमान हुए तथापि इन सद्गुणों की सौरभ विनष्ट न हो सकी। कोई भी शक्ति, उक्त गुण-गन्ध को क्षीण नहीं कर सकी। यह ध्रुव सत्य है कि ये वे सद्गुण हैं, जो मधुर सौरभ के रूप में अपनी अमरता लिए हुए हैं। . अक्षुण्ण-स्वरूप निर्धारित किये हुए हैं। .. मुझे प्रकर्ष हर्ष है कि आराध्य-स्वरूप प्रवर्तक गुरुवर्य श्री पद्मचन्द जी महाराज के प्रशिष्य एवं प्रवचन प्रभावक प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज के सुशिष्य श्री वरुण मुनि जी ने अपने प्रगुरु और गुरु के नाम-निक्षेप को भाव-निक्षेप के यथातथ्य रूप में प्राण-प्रतिष्ठा की और । फल-श्रुति के रूप में 'पद्म-पुष्प की अमर सौरभ' नामक कृति को संस्कृति के स्वरूप में रूपायित किया है। प्रज्ञामूर्ति लेखक श्री वरुण मुनि जी ने यथार्थ अर्थ । में सर्वात्मना-समर्पित गुरु-भक्ति से अपने शिष्यत्व को प्रकाशमान किया है और प्रस्तुत पुस्तक में प्रतिपादित सद्गुणों की सुगन्ध को सप्राण-भाषा एवं सजीव शैली में अभिव्यक्ति दी है। मैं स्वयं इस तथ्य से विश्वस्त हूँ कि मुनिवर्य का उपक्रम एवं पराक्रम उक्त कृति के रूप में मूर्तिमान् है और यह कृति अपने नाम के अनुरूप अध्येताओं के मन-पद्म को आनन्द-विभोर कर सकेगी । तथा अपनी अमर सौरभ से साहित्य-संसार चमत्कृति की अनुभूति करेगा। - उपाध्याय रमेश मुनि 'शास्त्री' . (५)

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