Book Title: Padma Pushpa Ki Amar Saurabh
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 10
________________ पुरोवचन पद्म-फूल 'और उसकी सुगन्ध, सुगन्ध और पद्म-फूल, ये दोनों वस्तुतः परस्पर अनुस्यूत हैं तथा एक-दूसरे से अनुप्राणित हैं, अनुप्रीणित भी हैं। इन दोनों का जो अस्तित्व है, महत्त्व है और मूल्य है, वह भी एक-दूसरे पर आधारित है और ये स्वयं की तथा अन्य की गुण - गरिमा के संवाहक भी हैं । यह पूर्णतः प्रगट है कि सुमन ही सौरभ का जनक है और सौरभ में ही सुमन की समग्र - महिमा समाहित है, सन्निहित है । प्रस्तुत दो दृश्य एवं अदृश्य तत्त्वों में मूल्यवान् एकत्व है, प्राणवान् समत्व है, तथापि इन दोनों के मध्य जो अन्तर- रेखाएँ अंकित हैं, जो पार्थक्य स्पष्टतः आभासित होता है वह वस्तु वृत्या चिन्तनीय है, मननीय है और अधिक प्रेरक भी है। प्रसून का जीवन भला कितने दिनों का है? सुरभि के सन्दर्भ में जो सत्य है, तथ्य है, वह इससे सर्वथा भिन्नता लिए हुए है। यह मधुर सौरभ मन एवं मस्तिष्क में अपने अनुभव का अमित - आनन्द और प्रकर्ष - हर्ष सम्प्रेषित कर देती है। तब वह भोक्ता की स्मृति का अभिन्न अंग बन जाती है, अक्षुण्ण - स्थायित्व का स्वरूप भी सम्प्राप्त कर लेती है। प्रसून प्रकृत भावेन विनश्वर है, क्षण-भंगुर है और उसकी जो सौरभ है, वह स्वभावत: अमर है, अनश्वर है। यह वह सुगन्ध है, जो कुसुम की सर्वस्व है, पद्म-पुष्प से सौरभ छिन जाये, छिन्न-भिन्न भी हो जाये, ऐसी स्थिति में उसका फूल कहलाने का अधिकार भी कहाँ रह जाता है? मनुष्य और उसके सद्गुण का भी कुछ ऐसा ही अभिन्न सम्बन्ध है । यह यथार्थ है कि मानव मरणधर्मा है, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है । परन्तु उसमें अमरत्वपूर्ण तत्त्व उसका व्यक्तित्व अर्थात् गुणगरिमा है। मनुष्य ससीम है, नश्वर है, क्षर है, किन्तु उस व्यक्ति का व्यक्तित्व असीम है, उसके सद्गुण वस्तुत: अमर हैं, अक्षर हैं, परम व्यापक हैं और अतिशय रूप से संस्मरणीय हैं। सद्गुण सौरभ अपनी अनुपम गरिमा को लिये हुए है। यह वह चमत्कारपूर्ण महिमा है, जो व्यक्ति के स्तर को उन्नत करती है, उज्ज्वल करती है और उसे यथार्थता एवं आदर्शता के स्वर्णिम - शिखर पर प्रतिष्ठित कर देती है। इतना ही नहीं, जीवन - पर्यन्त मनुष्य के लिए प्रतिष्ठा का मौलिक आधार रहता है और उसके वह (४)

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