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दो शब्द
'पदार्थ विज्ञान' का प्रथम संस्करण सन् १९७७ मे भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाशित हुआ था। जन-प्रियताके कारण वह तुरत बिककर समाप्त हो गया, परन्तु स्वाध्याय प्रेमियोकी मांग समाप्त होनेकी बजाय बढती चली गयी। भारतीय ज्ञानपीठके निदेशक श्री लक्ष्मी चन्दजी जैनके हम हृदयसे आभारी है कि हमारी प्रार्थना पर प्रकाशनका अधिकार देकर उन्होने इस सस्थाको इसका यह द्वितीय सस्करण प्रकाशित करनेके लिए अवसर प्रदान किया है ; और साथमे भोपालकी जैन समाजका भी जिसने ५०००) की अग्रिम राशि प्रदान करके इसे आर्थिक सहयोग दिया है।
कवर पर अकित सैद्धान्तिक रहस्य वाला चित्र परम पूज्य श्री वर्णीजी महाराजने स्वय अपने हाथसे तैयार किया है, जिसमे बड़ी कुशलतासे जैन-मान्य षट् द्रव्योका निदर्शन करके पुस्तकके पूरे प्रतिपाद्यका विवेचन प्रस्तुत कर दिया गया है। इस चित्रमे पूरा पृष्ठ आकाश द्रव्यका और उसके मध्य पुरुषाकृति लोकाकाशका प्रदर्शन करती है। धर्म अधर्म द्रव्य इसके साथ तन्मय पड़े हैं । किरणावलीसे युक्त ॐ कार सर्व गत चित्प्रकाशसे उपलक्षित जीव द्रव्यका निदर्शन करता है। इसी प्रकार गतिमान अणु पुद्गल द्रव्यकी और श्रेणीबद्ध बिन्दुओकी पक्तिये कालणुओकी सत्ताका द्योतन करती प्रतीत हो रही हैं। स्वाध्याय प्रेमी इसे ध्यान से देखें और जैन दर्शनके वैज्ञानिक दृष्टिकोणकी जितनी प्रशसा कर सके करें।
नरेन्द्र कुमार जैन