Book Title: Padartha Vigyana Author(s): Jinendra Varni Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat View full book textPage 9
________________ भूमिका यो तो जीवन मभी जी लेते हैं किन्तु जीवनके अन्त तक हर कोई यह नहीं जान पाता कि आखिर जीवन क्या है, उसका रहस्य, उसको सचाई पया है। हमारी सस्कृतिमे जीवन और धर्म की एकसाथ व्यवस्था की गयी है। अत: धर्मके स्वरूपको हम जानें इससे पहले हमे यह जान लेना बहुत आवश्यक है कि यह जीवन और जगत् क्या है। ___ यह जीवन दो प्रकारसे देखने, अनुभव करनेमे आता है-एक बाह्य जीवन और दूसरा अन्तस्का जीवन । बाह्य जीवन शरीर है तथा इन्द्रियोसे प्रत्यक्ष दिखाई देनेके कारण इसे सब जानते है, इस पर विश्वास करते है। अन्तस्का जीवन इन्द्रियोसे प्रत्यक्ष दिखाई न देनेके कारण उसे जान लेना प्रत्येकके वशकी बात नही है और न ही उसपर सहजमे विश्वास हो पाता है । यही कारण है कि बाह्य जीवनकी सुविधा तथा सरक्षणके लिए प्रायः सभी नित्य उद्यम करते है, किन्तु अन्तस्के जीवनकी सुविधा और सरक्षणका उद्यम हर किसीको उदित नही होता है। अन्त और बाह्य जीवन केवल अन्त करण तथा शरीर तक ही सीमित हो-ऐसी भी बात नही है। इनको और भी अधिक सूक्ष्मतासे समझा जाय, चिन्तनमे लाया जाय तो बडे-बडे रहस्य प्रगट होते हैं। स्पष्ट है कि अन्तस्का सम्बन्ध चेतनसे है जो एक अत्यन्त गूढ तत्त्व है, तथा शरीरका सम्बन्ध इस बाह्य जगत् या समस्त विश्वसे है जो अत्यन्त विस्तृत, व्यापक और विचित्र है । गूढ होनेके कारण चेवनको तथा व्याप्त एव विचित्र होनेके कारण विश्वको जान लेना भी इन्द्रियोकी सामर्थ्यके बाहर है। जनPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 277