Book Title: Padartha Vigyana
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 7
________________ सम्पादकीय एक बात प्रारम्भमे ही स्पष्ट कर दें कि पुस्तकके शीर्षकका सम्बन्ध स्कूली पाठ्यक्रमोमे आनेवाले 'पदार्थ विज्ञान' (फिजिक्स ) से नहीं है । फिज़िक्सकी सीमाओका अतिक्रमण करके यह पुस्तक पदार्थके उन पक्षो और रहस्योका उद्घाटन करती है जो वास्तवमे पदार्थको एक ओर 'फिजिक्स' या आधुनिक भौतिक विज्ञानसे जोड़ते है तो दूसरी ओर उसे व्यावहारिक 'दर्शन' से, सचेतनाको जागृत करनेवाले धर्मसे और गूढ रहस्योके उस व्यापक संसारसे जहां सब कुछ ज्ञान-ज्ञेयकी सत्तामे एकात्मक होकर 'अध्यात्मिक' बन जाता है। सच बात तो यह है कि विज्ञानके पाठोमे पढाये जानेवाला 'पदार्थ विज्ञान' अभी तक न तो पदार्थको पूर्णत. परिभाषित कर पाया है और न ही विज्ञानको। भौतिक विज्ञान किसी वस्तुका कितना ही गहन सूक्ष्म अध्ययन क्यो न प्रस्तुत कर दे, अध्यात्मकी दृष्टिमे वह अपूर्ण और बहुत स्थूल ही होता है ! स्पष्ट यह है कि भौतिक विज्ञानका विषय इन्द्रिय-प्रत्यक्ष होता है, अत. उसकी अपनी सीमाएं हैं। इसके विपरीत अध्यात्म-विज्ञानका क्षेत्र व्यापक है। उसमे न केवल मूर्त पदार्थों की अपितु अमूर्त पदार्थोके विश्लेषण करनेकी भी क्षमता होती है। इसके पीछे व्यक्तिकी तप.साधना और उससे उपलब्ध रूप-ज्ञानकी निर्मलता प्रमुख कारण है। हमारे ऋषि मुनियोने इस विशेष दृष्टिको आत्मसात् कर जीद और जगत् को सचाईको जाना और उनके सम्बन्धमे सिद्धान्तोकी प्रतिष्ठा कर वस्तुके हेय-उपादेय रूप धर्मको आधारशिला रखी।

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