Book Title: Padartha Vigyan
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 5
________________ प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करने वाले दातारों की सूची : १. श्री भंवरलालजी गंगवाल एवं मणिप्रभा जैन, जयपुर २. श्री भादूजी परिवार बालाजीनगर, इन्दौर ७००.०० ३. श्री महेन्द्र ए. शाह फाउण्ड्री मैग्जीन, इन्दौर ५११.०० ४. श्रीमती कुसुम जैन ध.प. विमलकुमारजी जैन, 'नीरु केमिकल्स', दिल्ली ५०१.०० ५. श्री सुन्दरलाल पुत्र श्री मानिकचन्दजी जैन, विनीता ५०१.०० ६. श्री अतुल रतनलालजी दोशी, ठाणे ५०१.०० ७. श्री यश सुहास मोहिरे, बेलगाँव ५०१.०० ८. एक मुमुक्षु बेन, बोरीवली, मुम्बई ५०१.०० ९. श्री राजकुमारजी कासलीवाल, इन्दौर ५०१.०० १०. श्री दिलीपकुमारजी पाटोदी, इन्दौर ५०१.०० ११. श्री चन्द्रप्रकाशजी सोनी, इन्दौर ५००.०० १२. श्री सुमनभाई भूरे, हिंगोली ५००.०० १३. श्रीमती वन्दना संजयकुमारजी मोदी, इन्दौर ५००.०० १४. श्री दुलीचन्दजी जैन, सोगानी, इन्दौर ५००.०० १५. श्री विजयजी पाटोदी, रतलाम ५००.०० १६. श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज २५१.०० १७. श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल, सूरत २५१.०० १८. ब्र. कुसुमताई पाटील, कुम्भोज २५१.०० १९. श्रीमती श्रीकान्ताबाई ध.प. श्री पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर २०१.०० २०. श्रीमती नीलू ध.प. राजेशकुमार मनोहरलालजी काला, इन्दौर २०१.०० २१. श्रीमती पानादेवी मोहनलालजी सेठी, गोहाटी १५१.०० २२. स्व. धापूदेवी ध.प. स्व. ताराचन्दजी गंगवाल जयपुर की पुण्य स्मृति में १५१.०० पदार्थ-विज्ञान प्रवचनसार-गाथा ९९ सदवट्ठिदं सहावे दव्वं दव्वस्स जो हि परिणामो। अत्थेसु सो सहावो ठिदिसंभवणाससंबद्धो ।। सदवस्थितं स्वभावे द्रव्यं द्रव्यस्य यो हि परिणामः । अर्थेषु स स्वभावः स्थितिसंभवनाशसंबद्धः ।। अन्वयार्थ :- (स्वभावे) स्वभाव में (अवस्थित) अवस्थित होने से (द्रव्यं) द्रव्य (सत्) सत् है, (द्रव्यस्य) द्रव्य का (यः हि)) जो (स्थितिसंभव-नाशसंबद्ध) उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य सहित (परिणाम) परिणाम है (सः) वह (अर्थेषु स्वभाव:) पदार्थों का स्वभाव है। टीका :- स्वभाव में नित्य अवस्थित होने से द्रव्य 'सत्' है। स्वभाव द्रव्य का ध्रौव्य-उत्पाद-विनाश की एकतास्वरूप परिणाम है। जैसे द्रव्य का वास्तु समग्रपने (अखण्डता द्वारा) एक होने पर भी, विस्तारक्रम में प्रवर्तमान उसके जो सूक्ष्म अंश हैं वे प्रदेश हैं; इसीप्रकार द्रव्य की वृत्ति समग्रपने द्वारा एक होने पर भी, प्रवाहक्रम में प्रवर्तमान उसके जो सूक्ष्म अंश हैं वे परिणाम हैं। जैसे विस्तारक्रम का कारण प्रदेशों का परस्पर व्यतिरेक है, उसीप्रकार प्रवाहक्रम का कारण परिणामों का परस्पर व्यतिरेक हैं। १. द्रव्य का वास्तु-द्रव्य का स्व-विस्तार, द्रव्य का स्व-क्षेत्र, द्रव्य का स्व-आकार, द्रव्य कास्व-दल। २. वृत्ति-वर्तना, होना, अस्तित्व। ३. व्यतिरेक - भेद, (भिन्नता, पृथकता) एक का दूसरे में अभाव । एक परिणाम दूसरे परिणामस्वरूप नहीं है, इसलिए द्रव्य के प्रवाह में क्रम है। कुल राशि ९,५२५.०० (viii)

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