Book Title: Padartha Vigyan
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 38
________________ प्रवचनसार-गाथा १०० ६६ पदार्थ विज्ञान पूर्वपर्याय का विनाश और उत्तरपर्याय की उत्पत्ति को आपस में एकदूसरे का कारण कहा है। आत्मा की ध्रुवता के अवलम्बन से मिथ्यात्व का नाश सम्यक्त्व की उत्पत्ति का कारण है और सम्यक्त्व का उत्पाद हुए बिना तथा आत्मा की ध्रुवता रहे बिना ही यदि मिथ्यात्व का नाश हो जाये तो मिथ्यात्व का नाश होने से आत्मा का अस्तित्व ही कुछ नहीं रहा - इसलिये मात्र व्यय की मान्यता में आत्मा का ही नाश होने का प्रसंग प्राप्त होता है और इसीप्रकार जगत के समस्त सत् पदार्थों का भी उसकी मान्यता में नाश हो जाता है, अर्थात् उत्पाद और ध्रुवता के बिना मात्र व्यय को ही मानने वाला नास्तिक जैसा हो जाता है। अहो! ध्रुवस्वभाव की सन्मुखता से होनेवाली वीतरागता की उत्पत्ति के बिना यदि राग-द्वेष के नाश को प्रारम्भ करने जाये तो उसके कभी रागद्वेष का नाश नहीं होता। आत्मा की ध्रुवता को लक्ष्य में लिये बिना राग को घटाने से आत्मा का अभाव होने का ही प्रसंग आता है। अरे भाई! राग को कम करने से लक्ष्य से राग कम नहीं होता, किन्तु जब ध्रुवता का अवलम्बन ले और वीतरागभाव की उत्पत्ति हो तब राग का व्यय होता है। ___जगत् के चेतन और जड़ सभी पदार्थों में प्रतिसमय उनके स्वभाव से ही उत्पाद-व्यय-ध्रुव है। यदि कोई मात्र उत्पाद को ही माने तो वह पदार्थों की ही नवीन उत्पत्ति मानता है और यदि कोई व्यय को ही माने तो वह भी पदार्थों का ही नाश मानता है - ऐसा मानने वाला जीव सर्वज्ञ को, गुरु को, शास्त्र को या ज्ञेयों के स्वभाव को नहीं मानता और अपने ज्ञानस्वभाव से आत्मा को भी वह नहीं मानता। देव-गुरु-शास्त्र भी ऐसी ही वस्तुस्थिति कहते हैं। ज्ञेय का स्वभाव भी ऐसा ही है आत्मा का स्वभाव उन्हें जानने का है - ऐसी जो वस्तुस्थिति है, वह समझने योग्य है। यह समझे तभी ज्ञान में शान्ति और वीतरागता हो सकती है। यथार्थ वस्तुस्थिति को समझे बिना ज्ञान में कभी शांति या वीतरागता नहीं होती। (१) उत्पाद, व्यय और ध्रुव के बिना नहीं होता। (२) व्यय, उत्पाद और ध्रुव के बिना नहीं होता। ये दो बातें सिद्ध कीं। उत्पाद और व्यय - दोनों ध्रुव के बिना ये नहीं होते - इस बात का भी उन दो बोलों में समावेश हो गया। अब तीसरी बात सिद्ध करते हैं : - (३) ध्रुव, उत्पाद और व्यय के बिना नहीं होता। उत्पाद-व्यय के बिना मात्र ध्रुव को मानने से जो दोष आता है, वह कहते हैं :- यदि मात्र ध्रुव को ही माना जाये तो वह ध्रुवतत्त्व उत्पादव्यय का उल्लंघन कर गया। पिण्ड के नाश बिना और घड़े की उत्पत्ति बिना मिट्टी की ध्रुवता किसमें रहेगी? परिणाम के बिना परिणामी सिद्ध ही नहीं हो सकता । उत्पाद-व्यय के बिना ध्रुव को निश्चित कौन करेगा? ध्रुव स्वयं ध्रुव को निश्चित नहीं करता, किन्तु नवीन पर्याय का उत्पाद और पुरानी पर्याय के व्यय द्वारा ध्रुव निश्चित होता है। ___ 'आत्मा मात्र कूटस्थ ध्रुव है' ऐसा कोई कहे, तो उसने भी पहले आत्मा को कूटस्थ नहीं माना था, किन्तु परिणामी माना था, उस मान्यता का नाश हुआ और 'आत्मा कूटस्थ है' - ऐसी मान्यता का उत्पाद हुआ। इसप्रकार कूटस्थ माननेवाले अपने में ही उत्पाद-व्यय आ गये। ऐसे उत्पाद-व्यय के बिना कूटस्थ मानने वाला भी सिद्ध नहीं होगा। कोई कहे कि हमें तो मात्र ध्रुव ही रखना है, उत्पाद-व्यय नहीं चाहिए; तो मात्र उस ध्रुव को ही प्राप्त करनेवाले को उत्पाद-व्यय से रहित ध्रुवता ही नहीं रहेगी, अथवा क्षणिक उत्पाद-व्यय स्वयं ही ध्रुव हो जायेंगे । यदि एक वस्तु ध्रुव न रहे तो जगत की कोई वस्तु ध्रुव नहीं रहेगी अथवा रागद्वेष आदि जो क्षणिक विकल्प हैं, वे भी ध्रुव ही हो जायेंगे, इसलिए प्रतिक्षण होनेवाले विकल्प ही द्रव्य हो जायेंगे - यह दोष आता है। वस्तु एकान्त नित्य नहीं है, किन्तु अनेकान्तस्वरूप है। वस्तु नित्यअनित्यरूप, एक-अनेकरूप - ऐसे अनेकान्तस्वरूप है। वस्तु में यदि नवीन पर्याय का उत्पाद और पुरानी पर्याय का व्यय न हो तो उसकी अनित्यता, अनेकता ही सिद्ध नहीं होगी अथवा क्षणिक उत्पाद-व्यय 38

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